पेड़ Poetry (page 11)

किसी और को मैं तिरे सिवा नहीं चाहता

अताउल हसन

सीने में सुलगते हुए लम्हात का जंगल

असलम कोलसरी

रूठ कर निकला तो वो उस सम्त आया भी नहीं

असलम कोलसरी

रूठ कर निकला तो वो इस सम्त आया भी नहीं

असलम कोलसरी

सदा-ए-क़ैस शौक़-ए-दश्त-पैमाई नमी-दानम

अासिफ़ अंजुम

एक फ़ित्ना सा उठाया है चला जाएगा

असग़र वेलोरी

परिंद पेड़ से परवाज़ करते जाते हैं

असअ'द बदायुनी

यही नहीं कि मिरा घर बदलता जाता है

असअ'द बदायुनी

ज़मीं की कोख से पहले शजर निकालता है

अरशद महमूद अरशद

ख़ुदी के ज़ो'म में ऐसा वो मुब्तला हुआ है

अरशद महमूद अरशद

ग़लत नहीं है दिल-ए-सुल्ह-ख़ू जो बोलता है

अरशद अब्दुल हमीद

मेरे ज़ेहन-ओ-दिल में फ़िक्र-ओ-फ़न में था

अक़ील शादाब

आरज़ू ने जिस की पोरों तक था सहलाया मुझे

अनवर सदीद

इक मंज़र में पेड़ थे जिन पर चंद कबूतर बैठे थे

अंजुम तराज़ी

लम्हा लम्हा अपनी ज़हरीली बातों से डसता था

अंजुम तराज़ी

मिरी आवाज़ सुन कर ज़िंदगी बेदार हो जैसे

अंजुम नियाज़ी

नख़्ल-ए-अना में ज़ोर-ए-नुमू किस ग़ज़ब का था

अंजुम ख़लीक़

ए'तिराफ़

अंजुम ख़लीक़

पलकों तक आ के अश्क का सैलाब रह गया

अंजुम ख़लीक़

कुछ तो नया किया है हवा ने पता करो

अंजुम बाराबंकवी

ज़माने भर का जो फ़ित्ना रहा था

अनजुम अब्बासी

जिस को समझे थे तवंगर वो गदागर निकला

अनीस अंसारी

यूँही बे-बाल-ओ-पर खड़े हुए हैं

अम्मार इक़बाल

अपने घर की खिड़की से मैं आसमान को देखूँगा

अमजद इस्लाम अमजद

शाइ'र की दुनिया

अमीर औरंगाबादी

ऐनक के दोनों शीशे ही अटे हुए थे धूल में

अमीक़ हनफ़ी

ज़िंदगी एक सज़ा हो जैसे

अमीन राहत चुग़ताई

आज वो फूल बना हुस्न-ए-दिल-आरा देखा

अमीन राहत चुग़ताई

दरवाज़ा वा कर के रोज़ निकलता था

अम्बर बहराईची

कोई पत्थर का निशाँ रख के जुदा हों हम तुम

अलीमुल्लाह हाली

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