पेड़ Poetry (page 3)

हर लम्हा ज़िंदगी के पसीने से तंग हूँ

सूर्यभानु गुप्त

रोज़ ओ शब इस सोच में डूबा रहता हूँ

सुलेमान ख़ुमार

कल रात मेरे साथ अजब हादिसा हुआ

सुलेमान ख़ुमार

ख़िज़ाँ की आज़माइश हो गया हूँ

सुहैल अख़्तर

सीलन

सुबोध लाल साक़ी

ज़ब्त कर ग़म को कि जीने का हुनर आएगा

सुभाष पाठक ज़िया

लहू में डूब के तलवार मेरे घर पहुँची

सिब्त अली सबा

सहरा में कड़ी धूप का डर होते हुए भी

शोज़ेब काशिर

निकलने वाले न थे ज़िंदगी के खेल से हम

शोज़ेब काशिर

जाने क्या बात है मानूस बहुत लगता है

शोहरत बुख़ारी

तिरे आँगन में है जो पेड़ फूलों से लदा होगा

शोभा कुक्कल

रिंद-ए-ख़राब-हाल को ज़ाहिद न छेड़ तू

ज़ौक़

बूँद बन बन के बिखरता जाए

शीन काफ़ निज़ाम

ये अर्ज़-ओ-समा क़ुलज़ुम-ओ-सहरा मुतहर्रिक

शम्स रम्ज़ी

जब तक तुझ को मौत न आए कर ले रैन-बसेरा बाबा

शम्स रम्ज़ी

अपना साया देख कर मैं बे-तहाशा डर गया

शमीम अनवर

तू क्या जाने तेरी बाबत क्या क्या सोचा करते हैं

शमीम अब्बास

आ के पत्थर तो मिरे सेहन में दो-चार गिरे

शकेब जलाली

ग़म-ए-दिल हीता-ए-तहरीर में आता ही नहीं

शकेब जलाली

आ के पत्थर तो मिरे सहन में दो चार गिरे

शकेब जलाली

हवस-ए-वक़्त का अंदाज़ा लगाया जाए

शकेब अयाज़

एक से मंज़र देख देख कर आँखें दुखने लगती हैं

शहज़ाद अहमद

सब्त है चेहरों पे चुप बन में अंधेरा हो चुका

शहज़ाद अहमद

इस दोशीज़ा मिट्टी पर नक़्श-ए-कफ़-ए-पा कोई भी नहीं

शहज़ाद अहमद

इस भरे शहर में आराम मैं कैसे पाऊँ

शहज़ाद अहमद

अब निभानी ही पड़ेगी दोस्ती जैसी भी है

शहज़ाद अहमद

हम ख़ुश हैं हमें धूप विरासत में मिली है

शहरयार

'नजमा' के लिए एक नज़्म

शहरयार

एक और साल गिरह

शहरयार

ये क़ाफ़िले यादों के कहीं खो गए होते

शहरयार

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