पेड़ Poetry (page 5)

ख़्वाहिश को अपने दर्द के अंदर समेट ले

सलीम शाहिद

चश्म बे-ख़्वाब हुई शहर की वीरानी से

सलीम कौसर

शजर तो कब का कट के गिर चुका है

सलीम अंसारी

फागुन

सलाहुद्दीन परवेज़

देख पाई न मिरे साए में चलता साया

सज्जाद बलूच

चहचहाती चंद चिड़ियों का बसर था पेड़ पर

सज्जाद बलूच

नया रौशन सहीफ़ा दिख रहा नईं

साजिद हमीद

चलो दुनिया से मिलना छोड़ देंगे

साजिद अमजद

कोई इम्काँ तो न था उस का मगर चाहता था

साइमा असमा

बेचैन हूँ ख़ूँनाबा-फ़िशानी में घिरा हूँ

सैफ़ ज़ुल्फ़ी

मैं लबादा ओढ़ कर जाने लगा

साहिल अहमद

उसी के लुत्फ़ से बस्ती निहाल है सारी

सईद क़ैस

नज़र में रंग समाए हुए उसी के हैं

सईद क़ैस

हिज्र तन्हाई के लम्हों में बहुत बोलता है

सईद क़ैस

शहर के फ़ुट-पाथ पर कुछ चुभते मंज़र देखना

सईद अख़्तर

और कुछ चारा नहीं

सादिक़

आग थी ऐसी कि अरमाँ जल गए

सदफ़ जाफ़री

यहाँ जो पेड़ थे अपनी जड़ों को छोड़ चुके

साबिर ज़फ़र

नए कपड़े बदल और बाल बना तिरे चाहने वाले और भी हैं

साबिर ज़फ़र

अब कहीं और कहाँ ख़ाक-बसर हों तिरे बंदे जा कर

साबिर ज़फ़र

वो धूप वो गलियाँ वही उलझन नज़र आए

साबिर वसीम

दुश्मनी पेड़ पर नहीं उगती

साबिर बद्र जाफ़री

'बद्र' जब आगही से मिलता है

साबिर बद्र जाफ़री

मुझ से पहले मिरे वतीरे देख

साबिर अदीब

ये जमाल क्या ये जलाल क्या ये उरूज क्या ये ज़वाल क्या

सादुल्लाह शाह

नए फ़ित्नों के हर जानिब से इतने सर निकल आए

सअादत बाँदवी

मुस्तक़बिल की आँख

रियाज़ लतीफ़

जो सैल-ए-दर्द उठा था वो जान छोड़ गया

रियाज़ मजीद

ख़ुद-निगर थे और महव-ए-दीद-ए-हुस्न-ए-यार थे

रज़ी मुजतबा

ना-तवानी में भी वो किरदार होना चाहिए

रौनक़ नईम

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