पेड़ Poetry (page 7)

जल कर जिस ने जल को देखा

इमरान शमशाद

आतिश-ए-बाग़ ऐसी भड़की है कि जलती है हवा

इमदाद अली बहर

आतिश-ए-बाग़ ऐसे भड़की है कि जलती है हवा

इमदाद अली बहर

यार परिंदे!

इलियास बाबर आवान

हमारे दिन गुज़र गए

इलियास बाबर आवान

सख़्त-जानी की बदौलत अब भी हम हैं ताज़ा-दम

इफ़्तिख़ार राग़िब

फिर उठाया जाऊँगा मिट्टी में मिल जाने के बाद

इफ़्तिख़ार राग़िब

अंदाज़-ए-सितम उन का निहायत ही अलग है

इफ़्तिख़ार राग़िब

वो मिला मुझ को न जाने ख़ोल कैसा ओढ़ कर

इफ़्तिख़ार नसीम

चाँद फिर तारों की उजली रेज़गारी दे गया

इफ़्तिख़ार नसीम

मिरे क़रीब ही महताब देख सकता था

इदरीस बाबर

दिल में है इत्तिफ़ाक़ से दश्त भी घर के साथ साथ

इदरीस बाबर

दिल कोई आईना नहीं टूट के रह गया तो फिर

इदरीस बाबर

किस लिए कतरा के जाता है मुसाफ़िर दम तो ले

इब्राहीम अश्क

रात भर तन्हा रहा दिन भर अकेला मैं ही था

इब्राहीम अश्क

फिर कोई पेड़ नकुल आता है

हुसैन आबिद

मैदान

हुसैन आबिद

मुँह अपनी रिवायात से फेरा नहीं करते

हसन रिज़वी

खिलने लगे हैं फूल और पत्ते हरे हुए

हसन रिज़वी

इस दर्जा मेरी ज़ात से उस को हसद हुआ

हसन रिज़वी

मैं घर से ज़ेहन में कुछ सोचता निकल आया

हसन निज़ामी

सीने में चराग़ जल रहा है

हसन अख्तर जलील

ख़्वाब अपने मिरी आँखों के हवाले कर के

हसन अब्बासी

कभी जो आँखों के आ गया आफ़्ताब आगे

हसन अब्बासी

सेहन-ए-आइंदा को इम्कान से धोए जाएँ

हम्माद नियाज़ी

हमारे बस में क्या है और हमारे बस में क्या नहीं

हम्माद नियाज़ी

ख़ुद ही बे-आसरा करते हैं

हामिदी काश्मीरी

ख़ाक पर फेंका हवाओं ने उठा ले मुझ को

हामिद जीलानी

मुकाफ़ात

हमीद अलमास

मेरे सामने मेरे घर का पूरा नक़्शा बिखरा है

हकीम मंज़ूर

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