पेड़ Poetry (page 9)

इस वक़्त तो यूँ लगता है

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

हथेलियों में लकीरों का जाल था कितना

एजाज़ उबैद

अपना अपना रंग

एजाज़ फ़ारूक़ी

मिरे कमरे में पूरी चाँदनी है

दिनेश नायडू

हवस से जिस्म को दो-चार करने वाली हवा

दिलावर अली आज़र

नज़र आया न कोई भी इधर देखा उधर देखा

दीपक क़मर

क्या वहीं मिलोगे तुम

दर्शिका वसानी

खंडर ये फिर बसाने का इरादा ही नहीं था

दानियाल तरीर

गया कि सैल-ए-रवाँ का बहाव ऐसा था

दानियाल तरीर

चश्म-ए-वा ही न हुई जल्वा-नुमा क्या होता

दानियाल तरीर

कैसा वो मौसम था ये तो समझ न पाए हम

चंद्र प्रकाश शाद

जिस की हर बात में क़हक़हा जज़्ब था मैं न था दोस्तो

बिमल कृष्ण अश्क

ऐसे में रोज़ रोज़ कोई ढूँडता मुझे

बिमल कृष्ण अश्क

तुम्हारी याद का इक दायरा बनाती हूँ

बिल्क़ीस ख़ान

फिर वो बे-सम्त उड़ानों की कहानी सुन कर

भारत भूषण पन्त

पराया लग रहा था जो वही अपना निकल आया

भारत भूषण पन्त

तंज़ की तेग़ मुझी पर सभी खींचे होंगे

बेकल उत्साही

भीतर बसने वाला ख़ुद बाहर की सैर करे मौला ख़ैर करे

बेकल उत्साही

ये एक पेड़ है आ इस से मिल के रो लें हम

बशीर बद्र

यूँही बे-सबब न फिरा करो कोई शाम घर में रहा करो

बशीर बद्र

उदास आँखों से आँसू नहीं निकलते हैं

बशीर बद्र

सोए कहाँ थे आँखों ने तकिए भिगोए थे

बशीर बद्र

रेत भरी है इन आँखों में आँसू से तुम धो लेना

बशीर बद्र

कोई फूल धूप की पत्तियों में हरे रिबन से बँधा हुआ

बशीर बद्र

चाय की प्याली में नीली टेबलेट घोली

बशीर बद्र

अच्छा तुम्हारे शहर का दस्तूर हो गया

बशीर बद्र

तो ऐसा क्यूँ नहीं करते

बशर नवाज़

मुझे कहना है

बशर नवाज़

अबदियत

बशर नवाज़

नद्दी के उस पार खड़ा इक पेड़ अकेला

बाक़ी सिद्दीक़ी

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