पेड़ Poetry (page 8)

कब इस ज़मीं की सम्त समुंदर पलट कर आए

हकीम मंज़ूर

हर एक आँख को कुछ टूटे ख़्वाब दे के गया

हकीम मंज़ूर

तारे हमारी ख़ाक में बिखरे पड़े रहे

गुलज़ार वफ़ा चौदरी

पुराने पेड़ को मौसम नई क़बाएँ दे

गुलज़ार वफ़ा चौदरी

ज़ाहिर मुसाफ़िरों का हुनर हो नहीं रहा

गुलज़ार बुख़ारी

अक्स-ए-रौशन तिरा आईना-ए-जाँ में रक्खा

गुलज़ार बुख़ारी

सिद्धार्थ की एक रात

गुलज़ार

लैंडस्केप

गुलज़ार

हवा के सींग न पकड़ो खदेड़ देती है

गुलज़ार

दिखाई देते हैं धुँद में जैसे साए कोई

गुलज़ार

वहम नहीं है

गुलनाज़ कौसर

तारीकियों में अपनी ज़िया छोड़ जाऊँगा

गुहर खैराबादी

जिस तरफ़ भी देखिए साया नहीं

गुहर खैराबादी

मुझे ग़ुबार उड़ाता हुआ सवार लगा

ग़ुलाम मुर्तज़ा राही

एक ज़ाती नज़्म

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

फिर वो दरिया है किनारों से छलकने वाला

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

कैसा होगा देस पिया का कैसा पिया का गाँव रे

ग़ौस सीवानी

आधी रात

फ़िराक़ गोरखपुरी

इस राज़ के बातिन तक पहुँचा ही नहीं कोई

फ़र्रुख़ जाफ़री

एक परी आकाश से उतरी

फ़ारूक़ नाज़की

एक नज़्म जंगलों के नाम

फ़ारूक़ नाज़की

शहर-ए-दोस्त

फ़ारूक़ बख़्शी

जलते मौसम में कोई फ़ारिग़ नज़र आता नहीं

फ़ारिग़ बुख़ारी

यादों का अजीब सिलसिला है

फ़ारिग़ बुख़ारी

दो घड़ी बैठे थे ज़ुल्फ़-ए-अम्बरीं की छाँव में

फ़ारिग़ बुख़ारी

तू मुझ को जो इस शहर में लाया नहीं होता

फ़रहत एहसास

तह-ए-बदन कहीं बेदार होता जाता हूँ

फ़रहत एहसास

दोनों जहाँ से आ गया कर के इधर उधर की सैर

फ़ैज़ान हाशमी

लोग कहते हैं कि क़ातिल को मसीहा कहिए

फ़ैज़ुल हसन

शाम

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

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