डूबा हूँ तो किस शख़्स का चेहरा नहीं उतरा

डूबा हूँ तो किस शख़्स का चेहरा नहीं उतरा

मैं दर्द के क़ुल्ज़ुम में भी तन्हा नहीं उतरा

ज़ंजीर-ए-नफ़स लिखती रही दर्द की आयात

इक पल को मगर सुख का सहीफ़ा नहीं उतरा

इंसान मुअल्लक़ हैं ख़लाओं के भँवर में

अश्जार से लगता है कि दरिया नहीं उतरा

सुनते हैं कि इस पेड़ से ठंडक ही मिलेगी

शाख़ों के दरीचों से तो झोंका नहीं उतरा

पथराई हुई आँखों पे हैराँ न हो इतना

इस शहर में कोई भी तो ज़िंदा नहीं उतरा

सहरा-ए-बदन को थी तलब साए की लेकिन

इक शख़्स भी मेआर पे पूरा नहीं उतरा

सूरज की तलब में कई नज़राने दिए हैं

घर के दर-ओ-दीवार से साया नहीं उतरा

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In Hindi By Famous Poet Tariq Jami. is written by Tariq Jami. Complete Poem in Hindi by Tariq Jami. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.