पर्दा Poetry (page 13)

जैसे भी ये दुनिया है जो कुछ भी ज़माना है

बासित भोपाली

चराग़ उस ने बुझा भी दिया जला भी दिया

बशीरुद्दीन अहमद देहलवी

यूँही बे-सबब न फिरा करो कोई शाम घर में रहा करो

बशीर बद्र

शो'ला-ए-गुल गुलाब शो'ला क्या

बशीर बद्र

रेत भरी है इन आँखों में आँसू से तुम धो लेना

बशीर बद्र

लाख पर्दे से रुख़-ए-अनवर अयाँ हो जाएगा

मिर्ज़ा रज़ा बर्क़

लब-ए-रंगीं से अगर तू गुहर-अफ़शाँ होता

मिर्ज़ा रज़ा बर्क़

बे-बुलाए हुए जाना मुझे मंज़ूर नहीं

मिर्ज़ा रज़ा बर्क़

सुब्ह का भेद मिला क्या हम को

बाक़ी सिद्दीक़ी

कम कम रहना ग़म के सुर्ख़ जज़ीरों में

बक़ा बलूच

ख़ुदा के वास्ते ज़ाहिद उठा पर्दा न काबे का

ज़फ़र

वो सौ सौ अठखटों से घर से बाहर दो क़दम निकले

ज़फ़र

रुख़ जो ज़ेर-ए-सुंबल-ए-पुर-पेच-ओ-ताब आ जाएगा

ज़फ़र

नहीं इश्क़ में इस का तो रंज हमें कि क़रार ओ शकेब ज़रा न रहा

ज़फ़र

ज़रूरतों की हमाहमी में जो राह चलते भी टोकती है वो शाइ'री है

बद्र-ए-आलम ख़लिश

कमाल-ए-हुस्न का जब भी ख़याल आया है

अज़ीज़ साबरी

वो एक राज़! जो मुद्दत से राज़ था ही नहीं

अज़ीज़ नबील

मैं अपने गिर्द लकीरें बिछाए बैठा हूँ

अज़ीज़ नबील

गुज़रने वाली हवा को बता दिया गया है

अज़ीज़ नबील

दिल समझता था कि ख़ल्वत में वो तन्हा होंगे

अज़ीज़ लखनवी

दिल कुश्ता-ए-नज़र है महरूम-ए-गुफ़्तुगू हूँ

अज़ीज़ लखनवी

उठाईं हिज्र की शब दिल ने आफ़तें क्या क्या

अज़ीज़ हैदराबादी

वो साअ'त सूरत-ए-चक़माक़ जिस से लौ निकलती है

अज़ीज़ हामिद मदनी

सब पेच-ओ-ताब-ए-शौक़ के तूफ़ान थम गए

अज़ीज़ हामिद मदनी

लिखी हुई जो तबाही है उस से क्या जाता

अज़ीज़ हामिद मदनी

दिलों की उक़्दा-कुशाई का वक़्त है कि नहीं

अज़ीज़ हामिद मदनी

निकल पड़े न कहीं अपनी आड़ से कोई

अज़ीज़ बानो दाराब वफ़ा

मैं किसी जन्म की यादों पे पड़ा पर्दा हूँ

अज़ीज़ बानो दाराब वफ़ा

दाग़ चेहरे का यूँही छोड़ दिया जाता है

अज़हर नवाज़

किसी के ऐब छुपाना सवाब है लेकिन

अज़हर इनायती

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