पर्दा Poetry (page 11)

मोहताज-ए-अजल क्यूँ है ख़ुद अपनी क़ज़ा हो जा

फ़ानी बदायुनी

मर कर मरीज़-ए-ग़म की वो हालत नहीं रही

फ़ानी बदायुनी

ख़ुद मसीहा ख़ुद ही क़ातिल हैं तो वो भी क्या करें

फ़ानी बदायुनी

दुनिया-ए-हुस्न-ओ-इश्क़ में किस का ज़ुहूर था

फ़ानी बदायुनी

जल्वा हो तो जल्वा हो पर्दा हो तो पर्दा हो

फ़ना निज़ामी कानपुरी

ऐ हुस्न ज़माने के तेवर भी तो समझा कर

फ़ना निज़ामी कानपुरी

उठा पर्दा तो महशर भी उठेगा दीदा-ए-दिल में

फ़ना बुलंदशहरी

बा-होश वही हैं दीवाने उल्फ़त में जो ऐसा करते हैं

फ़ना बुलंदशहरी

बिजली सी इक और गिरा दी ज़ालिम ने

फख़्र अब्बास

शाम

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

कोई आशिक़ किसी महबूबा से!

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

वो कहीं था कहीं दिखाई दिया

फ़हमी बदायूनी

वलवले जब हवा के बैठ गए

फ़हमी बदायूनी

तुझ बिना दिल को बे-क़रारी है

फ़ाएज़ देहलवी

उजाले तेल छिड़कने लगे उजालों पर

एज़ाज़ अफ़ज़ल

उजाले तेल छिड़कने लगे उजालों पर

एज़ाज़ अफ़ज़ल

किरदार

एलिज़ाबेथ कुरियन मोना

कुछ मिरे शौक़ ने दर-पर्दा कहा हो जैसे

एहतिशाम हुसैन

मरने वाले फ़ना भी पर्दा है

एहसान दानिश

यूँ उस पे मिरी अर्ज़-ए-तमन्ना का असर था

एहसान दानिश

रंग-ए-तहज़ीब-ओ-तमद्दुन के शनासा हम भी हैं

एहसान दानिश

जब रुख़-ए-हुस्न से नक़ाब उठा

एहसान दानिश

जब भी ख़ल्वत में वो याद आएगा

एहसान दानिश

अक़्ल कितनी शुऊ'र कितना है

डॉक्टर आज़म

इस शहर-ए-निगाराँ की कुछ बात निराली है

दिवाकर राही

स्टेज पर पड़ा था जो पर्दा वो उठ चुका

दिलावर फ़िगार

'ग़ालिब' को बुरा क्यूँ कहो

दिलावर फ़िगार

शाइ'र से शेर सुनिए तो मिस्रा उठाइए

दिलावर फ़िगार

तमकीं है और हुस्न-ए-गरेबाँ है और हम

दिल शाहजहाँपुरी

लुत्फ़ हो हश्र में कुछ बात बनाए न बने

दत्तात्रिया कैफ़ी

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