पर्दा Poetry (page 9)

मौत के चेहरे पे है क्यूँ मुर्दनी छाई हुई

हफ़ीज़ जालंधरी

है अज़ल की इस ग़लत बख़्शी पे हैरानी मुझे

हफ़ीज़ जालंधरी

महव-ए-कमाल-ए-आरज़ू मुझ को बना के भूल जा

हादी मछलीशहरी

असल साबित है वही शरअ' का इक पर्दा है

हबीब मूसवी

शराब पी जान तन में आई अलम से था दिल कबाब कैसा

हबीब मूसवी

कोई बात ऐसी आज ऐ मेरी गुल-रुख़्सार बन जाए

हबीब मूसवी

है आठ पहर तू जल्वा-नुमा तिमसाल-ए-नज़र है परतव-ए-रुख़

हबीब मूसवी

फ़रियाद भी मैं कर न सका बे-ख़बरी से

हबीब मूसवी

दुनिया को रू-शनास-ए-हक़ीक़त न कर सके

हबीब अहमद सिद्दीक़ी

दिल के दामन में जो सरमाया-ए-अफ़्कार न था

गुहर खैराबादी

मुँह ढाँप के मैं जो रो रहा हूँ

गोया फ़क़ीर मोहम्मद

दुआएँ माँगीं हैं मुद्दतों तक झुका के सर हाथ उठा उठा कर

गोया फ़क़ीर मोहम्मद

दुआ और बद-दुआ के दरमियाँ

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

पड़ा है दैर-ओ-काबा में ये कैसा ग़ुल ख़ुदा जाने

ग़ुलाम मौला क़लक़

उड़ाऊँ न क्यूँ तार-तार-ए-गरेबाँ

ग़ुलाम मौला क़लक़

तुझे कल ही से नहीं बे-कली न कुछ आज ही से रहा क़लक़

ग़ुलाम मौला क़लक़

थक थक गए हैं आशिक़ दरमांदा-ए-फ़ुग़ाँ हो

ग़ुलाम मौला क़लक़

हो जुदा ऐ चारा-गर है मुझ को आज़ार-ए-फ़िराक़

ग़ुलाम मौला क़लक़

किस तरह वाक़िफ़ हों हाल-ए-आशिक़-ए-जाँ-बाज़ से

ग़ुलाम भीक नैरंग

ख़ून-ए-दिल मुझ से तिरा रंग-ए-हिना माँगे है

ग़यास अंजुम

न पूछ हिज्र में जो हाल अब हमारा है

ग़मगीन देहलवी

अल्फ़ाज़-ए-बे-सदा का इम्कान आइने में

ग़ालिब इरफ़ान

गरचे है तर्ज़-ए-तग़ाफ़ुल पर्दा-दार-ए-राज़-ए-इश्क़

ग़ालिब

बे-पर्दा सू-ए-वादी-ए-मजनूँ गुज़र न कर

ग़ालिब

बे-ख़ुदी बे-सबब नहीं 'ग़ालिब'

ग़ालिब

सियाही जैसे गिर जाए दम-ए-तहरीर काग़ज़ पर

ग़ालिब

क़तरा-ए-मय बस-कि हैरत से नफ़स-परवर हुआ

ग़ालिब

फिर कुछ इक दिल को बे-क़रारी है

ग़ालिब

महरम नहीं है तू ही नवा-हा-ए-राज़ का

ग़ालिब

लाग़र इतना हूँ कि गर तू बज़्म में जा दे मुझे

ग़ालिब

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