पर्दा Poetry (page 12)

काश

दर्शिका वसानी

सुनाई जाती हैं दर-पर्दा गालियाँ मुझ को

दाग़ देहलवी

ख़ूब पर्दा है कि चिलमन से लगे बैठे हैं

दाग़ देहलवी

हमें है शौक़ कि बे-पर्दा तुम को देखेंगे

दाग़ देहलवी

उज़्र आने में भी है और बुलाते भी नहीं

दाग़ देहलवी

सितम ही करना जफ़ा ही करना निगाह-ए-उल्फ़त कभी न करना

दाग़ देहलवी

मिलाते हो उसी को ख़ाक में जो दिल से मिलता है

दाग़ देहलवी

लुत्फ़ वो इश्क़ में पाए हैं कि जी जानता है

दाग़ देहलवी

ग़ैर को मुँह लगा के देख लिया

दाग़ देहलवी

भवें तनती हैं ख़ंजर हाथ में है तन के बैठे हैं

दाग़ देहलवी

हिजाब बन के वो मेरी नज़र में रहता है

चंद्र प्रकाश जौहर बिजनौरी

किया है फ़ाश पर्दा कुफ़्र-ओ-दीं का इस क़दर मैं ने

चकबस्त ब्रिज नारायण

न कोई दोस्त दुश्मन हो शरीक-ए-दर्द-ओ-ग़म मेरा

चकबस्त ब्रिज नारायण

सोचने का भी नहीं वक़्त मयस्सर मुझ को

बिस्मिल अज़ीमाबादी

ख़िज़ाँ के जाने से हो या बहार आने से

बिस्मिल अज़ीमाबादी

चाँद को रेशमी बादल से उलझता देखूँ

बिमल कृष्ण अश्क

बुत-ए-काफ़िर जो तू मुझ से ख़फ़ा है

भारतेंदु हरिश्चंद्र

उम्मीदों से पर्दा रक्खा ख़ुशियों से महरूम रहीं

भारत भूषण पन्त

अक़्ल दौड़ाई बहुत कुछ तो गुमाँ तक पहुँचे

बेताब अज़ीमाबादी

ख़ुदा रक्खे तुझे मेरी बुराई देखने वाले

बेख़ुद देहलवी

दे मोहब्बत तो मोहब्बत में असर पैदा कर

बेख़ुद देहलवी

सीने में दिल है दिल में दाग़ दाग़ में सोज़-ओ-साज़-ए-इश्क़

बेदम शाह वारसी

खींची है तसव्वुर में तस्वीर-ए-हम-आग़ोशी

बेदम शाह वारसी

अगर काबा का रुख़ भी जानिब-ए-मय-ख़ाना हो जाए

बेदम शाह वारसी

यार पहलू में निहाँ था मुझे मा'लूम न था

बयान मेरठी

सर-ए-शोरीदा पा-ए-दश्त-ए-पैमा शाम-ए-हिज्राँ था

बयान मेरठी

लहू टपका किसी की आरज़ू से

बयान मेरठी

खुला है जल्वा-ए-पिन्हाँ से अज़-बस चाक वहशत का

बयान मेरठी

ग़म्ज़ा-ए-मा'शूक़ मुश्ताक़ों को दिखलाती है तेग़

बयान मेरठी

नहीं ये जल्वा-हा-ए-राज़-ए-इरफ़ाँ देखने वाले

बासित भोपाली

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