पत्थर Poetry (page 20)

दीदनी है बहार का मंज़र

रईस अमरोहवी

ख़ूब नासेह की नसीहत का नतीजा निकला

रहमत क़रनी

दिल छोड़ के हर राहगुज़र ढूँढ रहा हूँ

रहमत इलाही बर्क़ आज़मी

चोर

राही मासूम रज़ा

दोस्तों में वाक़ई ये बहस भी अक्सर हुई

इक़बाल उमर

मुझ पे पत्थर फेंकने वालों को तेरे शहर में

इक़बाल साजिद

मैं आईना बनूँगा तू पत्थर उठाएगा

इक़बाल साजिद

वो मुसलसल चुप है तेरे सामने तन्हाई में

इक़बाल साजिद

उस आइने में देखना हैरत भी आएगी

इक़बाल साजिद

तुम मुझे भी काँच की पोशाक पहनाने लगे

इक़बाल साजिद

फेंक यूँ पत्थर कि सत्ह-ए-आब भी बोझल न हो

इक़बाल साजिद

ख़ुश्क उस की ज़ात का सातों समुंदर हो गया

इक़बाल साजिद

जाने क्यूँ घर में मिरे दश्त-ओ-बयाबाँ छोड़ कर

इक़बाल साजिद

गड़े मर्दों ने अक्सर ज़िंदा लोगों की क़यादत की

इक़बाल साजिद

दहर के अंधे कुएँ में कस के आवाज़ा लगा

इक़बाल साजिद

दोस्तों के हू-ब-हू पैकर का अंदाज़ा लगा

इक़बाल नवेद

बगूलों की सफ़ें किरनों के लश्कर सामने आए

इक़बाल माहिर

ख़्वाब बर्फ़ानी चिता है

इक़बाल ख़ुसरो क़ादरी

दिल-ए-मुज़्तर को हम कुछ इस तरह समझाए जाते हैं

इक़बाल हुसैन रिज़वी इक़बाल

मर्ग-ए-गुल से पेशतर

इक़बाल हैदर

खोए गए तो आइने को मो'तबर किया

इक़बाल हैदर

दिल भी पत्थर सीना पत्थर आँख पे पट्टी रक्खी है

इन्तिज़ार ग़ाज़ीपुरी

क्या भला शैख़-जी थे दैर में थोड़े पत्थर

इंशा अल्लाह ख़ान

शाख़-ए-अदम

इंजिला हमेश

जिला

इंजिला हमेश

पानी मिट कर भी रह गया पानी

इंद्र मोहन मेहता कैफ़

नहीं मालूम ये क्या कर चुके हैं

इनाम नदीम

दिल पर किसी पत्थर का निशाँ यूँ ही रहेगा

इनाम नदीम

हर सम्त से उठता है धुआँ शहर के लोगो

इनाम हनफ़ी

तेरी याद

इमरान शनावर

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