पत्थर Poetry (page 40)

ये फैलती शिकस्तगी एहसास की तरफ़

आदिल मंसूरी

पानी को पत्थर कहते हैं

आदिल मंसूरी

जो चीज़ थी कमरे में वो बे-रब्त पड़ी थी

आदिल मंसूरी

चारों तरफ़ से मौत ने घेरा है ज़ीस्त को

आदिल मंसूरी

कोई पत्थर कोई गुहर क्यूँ है

अदीम हाशमी

ग़म के हर इक रंग से मुझ को शनासा कर गया

अदीम हाशमी

फ़ासले ऐसे भी होंगे ये कभी सोचा न था

अदीम हाशमी

चल दिया वो देख कर पहलू मिरी तक़्सीर का

अदीम हाशमी

आग़ोश-ए-सितम में ही छुपा ले कोई आ कर

अदीम हाशमी

सब इक न इक सराब के चक्कर में रह गए

अबु मोहम्मद सहर

क्या बुरी तरह भौं मटकती है

आबरू शाह मुबारक

गुनाहगारों की उज़्र-ख़्वाही हमारे साहिब क़ुबूल कीजे

आबरू शाह मुबारक

देख तू बे-रहम आशिक़ नीं तुझे छोड़ा नहीं

आबरू शाह मुबारक

जब आसमान पर मह-ओ-अख़्तर पलट कर आए

आबिद मुनावरी

चाँद से अपनी यारी थी

आबिद मुनावरी

आलम-ए-ख़्वाब सही ख़्वाब में चलते रहिए

आबिद करहानी

वो जो हर राह के हर मोड़ पर मिल जाता है

आबिद आलमी

दे गया आख़िरी सदा कोई

आबिद आलमी

कौन पत्थर उठाए

अब्दुस्समद ’तपिश’

गरचे नेज़ों पे सर है

अब्दुस्समद ’तपिश’

ख़मोशी मेरी लय में गुनगुनाना चाहती है

अब्दुर रऊफ़ उरूज

मैं भी तालाब का ठहरा हुआ पानी था कभी

अब्दुर्रहीम नश्तर

टूट कर देर तलक प्यार किया है मुझ को

अब्दुर्रहीम नश्तर

दिल दिया वहशत लिया और ख़ुद को रुस्वा कर लिया

अब्दुल्लतीफ़ शौक़

अच्छा है कोई तीर-बा-नश्तर भी ले चलो

अब्दुल्लतीफ़ शौक़

अपने होने का इक इक पल तजरबा करते रहे

अब्दुल्लाह कमाल

कभी प्यारा कोई मंज़र लगेगा

अब्दुल्लाह जावेद

चाँदनी का रक़्स दरिया पर नहीं देखा गया

अब्दुल्लाह जावेद

ग़म से घबरा के कभी नाला-ओ-फ़रियाद न कर

अब्दुल रहमान ख़ान वासिफ़ी बहराईची

इंतिशार-ओ-ख़ौफ़ हर इक सर में है

अब्दुल मतीन नियाज़

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