पत्थर Poetry (page 38)

लफ़्ज़ों के बुत टूट चुके हैं

अहमद सोज़

फिर इस के ब'अद पत्थर हो गया आँखों का पानी

अहमद शनास

मैं फ़तह-ए-ज़ात मंज़र तक न पहुँचा

अहमद शनास

लम्हा लम्हा रोज़ ओ शब को देर होती जाएगी

अहमद शनास

ज़ख़्म इतने हैं बदन पर कि कहीं दर्द नहीं

अहमद सग़ीर सिद्दीक़ी

ख़ून की हर बूँद पत्थर हो चुकी

अहमद रज़ी बछरायूनी

पत्थर

अहमद नदीम क़ासमी

नया साल

अहमद नदीम क़ासमी

बीसवीं सदी का इंसान

अहमद नदीम क़ासमी

तू जो बदला तो ज़माना भी बदल जाएगा

अहमद नदीम क़ासमी

मैं वो शाएर हूँ जो शाहों का सना-ख़्वाँ न हुआ

अहमद नदीम क़ासमी

जब भी आँखों में तिरी रुख़्सत का मंज़र आ गया

अहमद नदीम क़ासमी

अंदाज़ हू-ब-हू तिरी आवाज़-ए-पा का था

अहमद नदीम क़ासमी

ज़ख़्म खाना ही जब मुक़द्दर हो

अहमद महफ़ूज़

यूँ ही कब तक ऊपर ऊपर देखा जाए

अहमद महफ़ूज़

चंद पेड़ों को ही मजनूँ की दुआ होती है

अहमद कामरान

तू ज़ियादा में से बाहर नहीं आया करता

अहमद कामरान

रू-ए-ताबाँ माँग मू-ए-सर धुआँ बत्ती चराग़

अहमद हुसैन माइल

कोई हसीन है मुख़्तार-ए-कार-ख़ाना-ए-इश्क़

अहमद हुसैन माइल

रास्ते में शाम का मुक़द्दर होना

अहमद हमेश

मेहवर

अहमद हमेश

लैंडस्केप

अहमद हमेश

तसलसुल

अहमद फ़राज़

तख़्लीक़

अहमद फ़राज़

नामा-ए-जानाँ

अहमद फ़राज़

कर गए कूच कहाँ

अहमद फ़राज़

ईद-कार्ड

अहमद फ़राज़

ये क्या कि सब से बयाँ दिल की हालतें करनी

अहमद फ़राज़

जो भी दरून-ए-दिल है वो बाहर न आएगा

अहमद फ़राज़

इस से पहले कि बे-वफ़ा हो जाएँ

अहमद फ़राज़

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