पत्थर Poetry (page 39)

मैं तिरी मानता लेकिन जो मिरा दिल है ना

अहमद अता

वफ़ा कम है नज़र आती बहुत है

अहमद अल्वी

न निकला मुँह से कुछ निकली न कुछ भी क़ल्ब-ए-मुज़्तर की

आग़ा शाएर क़ज़लबाश

मिरे करीम इनायत से तेरी क्या न मिला

आग़ा शाएर क़ज़लबाश

उड़ कर सुराग़-ए-कूचा-ए-दिलबर लगाइए

आग़ा हज्जू शरफ़

मैं ने दिल-ए-बे-ताब पे जो जब्र किया है

अफ़ज़ल परवेज़

ख़ाली हुआ गिलास नशा सर में आ गया

अफ़ज़ाल नवेद

हम ने कुछ पँख जो दालान में रख छोड़े हैं

अफ़ज़ाल नवेद

मिटते हुए नुक़ूश-ए-वफ़ा को उभारिए

अफ़ज़ल मिनहास

मैं फ़क़त इस जुर्म में दुनिया में रुस्वा हो गया

अफ़ज़ल मिनहास

कर्ब के शहर से निकले तो ये मंज़र देखा

अफ़ज़ल मिनहास

हर चंद ज़िंदगी का सफ़र मुश्किलों में है

अफ़ज़ल मिनहास

गिर पड़ा तू आख़िरी ज़ीने को छू कर किस लिए

अफ़ज़ल मिनहास

अब जो पत्थर है आदमी था कभी

अफ़ज़ल ख़ान

क्या मुसीबत है कि हर दिन की मशक़्क़त के एवज़

अफ़ज़ल गौहर राव

तेरी दुनिया से ये दिल इस लिए घबराता है

अफ़ज़ल गौहर राव

शिकस्त खा के भी कब हौसले हैं कम मेरे

अफ़ज़ल गौहर राव

नींद आई न खुला रात का बिस्तर मुझ से

अफ़ज़ल गौहर राव

देर तक कोई किसी से बद-गुमाँ रहता नहीं

अफ़ज़ल गौहर राव

कभी न ख़ुद को बद-अंदेश-ए-दश्त-ओ-दर रक्खा

अफ़ज़ाल अहमद सय्यद

जो दिल में है वही बाहर दिखाई देता है

आफ़ताब शम्सी

शिकस्त

आफ़ताब शम्सी

जू-ए-रवाँ हूँ ठहरा समुंदर नहीं हूँ मैं

आफ़ताब शम्सी

जो दिल में है वही बाहर दिखाई देता है

आफ़ताब शम्सी

वैसे तो बहुत धोया गया घर का अंधेरा

आफ़ताब इक़बाल शमीम

शौक़-ए-वारफ़्ता चला शहर-ए-तमाशा की तरफ़

अफ़ीफ़ सिराज

यादों ने उसे तोड़ दिया मार के पत्थर

आदिल मंसूरी

वो मर गई थी

आदिल मंसूरी

नज़्म

आदिल मंसूरी

हश्र की सुब्ह दरख़्शाँ हो मक़ाम-ए-महमूद

आदिल मंसूरी

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