पत्थर Poetry (page 22)

बे-ज़मीरों के कभी झाँसे में मैं आता नहीं

इबरत बहराईची

ख़ुद अपने आप से लेना था इंतिक़ाम मुझे

इब्राहीम अश्क

मोहब्बतों में जो मिट मिट के शाहकार हुआ

इब्राहीम अश्क

यूँ तो पत्थर बहुत से देखे हैं

इब्न-ए-मुफ़्ती

फिर से वो लौट कर नहीं आया

इब्न-ए-मुफ़्ती

फ़र्ज़ करो

इब्न-ए-इंशा

राज़ कहाँ तक राज़ रहेगा मंज़र-ए-आम पे आएगा

इब्न-ए-इंशा

किस को पार उतारा तुम ने किस को पार उतारोगे

इब्न-ए-इंशा

उलझनें इतनी थीं मंज़र और पस-मंज़र के बीच

हुसैन ताज रिज़वी

वक़्त ऐसा कोई तुझ पर आए

हुमैरा राहत

अन-कही

हिमायत अली शाएर

ये बात तो नहीं है कि मैं कम स्वाद था

हिमायत अली शाएर

हो चुकी अब शाइ'री लफ़्ज़ों का दफ़्तर बाँध लो

हिमायत अली शाएर

आँख की क़िस्मत है अब बहता समुंदर देखना

हिमायत अली शाएर

हम ख़ुद भी हुए नादिम जब हर्फ़-ए-दुआ निकला

हिलाल फ़रीद

रुकने के लिए दस्त-ए-सितम-गर भी नहीं था

हिलाल फ़रीद

हम ख़ुद भी हुए नादिम जब हर्फ़-ए-दुआ निकला

हिलाल फ़रीद

हमारे शे'र का हासिल तअस्सुरात से है

हयात मदरासी

ये जज़्बा-ए-तलब तो मिरा मर न जाएगा

हयात लखनवी

कब क़ाबिल-ए-तक़लीद है किरदार हमारा

हयात लखनवी

छोड़ेंगे गरेबाँ का न इक तार कभी हम

हातिम अली मेहर

किसे हम अपना कहें कोई ग़म-गुसार नहीं

हसीब रहबर

तय मुझ से ज़िंदगी का कहाँ फ़ासला हुआ

हसन निज़ामी

उम्मीद ओ यास ने क्या क्या न गुल खिलाए हैं

हसन नईम

कुछ उसूलों का नशा था कुछ मुक़द्दस ख़्वाब थे

हसन नईम

दिल में हो आस तो हर काम सँभल सकता है

हसन नईम

कोई ग़मगीं कोई ख़ुश हो कर सदा देता रहा

हसन नज्मी सिकन्दरपुरी

इश्क़ को पास-ए-वफ़ा आज भी करते देखा

हसन नज्मी सिकन्दरपुरी

बीते हुए लम्हों के जो गिरवीदा रहे हैं

हसन नज्मी सिकन्दरपुरी

आइने से न डरो अपना सरापा देखो

हसन नज्मी सिकन्दरपुरी

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