ख़ुद अपने आप से लेना था इंतिक़ाम मुझे
मैं अपने हाथ के पत्थर से संगसार हुआ
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तिरी ज़मीं से उठेंगे तो आसमाँ होंगे
उस की इक दुनिया हूँ मैं और मेरी इक दुनिया है वो
अना ने टूट के कुछ फ़ैसला किया ही नहीं
बिखरे हुए थे लोग ख़ुद अपने वजूद में
गुलशन में ले के चल किसी सहरा में ले के चल
दुनिया बहुत क़रीब से उठ कर चली गई
मोहब्बतों में जो मिट मिट के शाहकार हुआ
चले गए तो पुकारेगी हर सदा हम को
न दिल में कोई ग़म रहे न मेरी आँख नम रहे
रू-ब-रू उन के कोई हर्फ़ अदा क्या करते
न कू-ए-यार में ठहरा न अंजुमन में रहा
करें सलाम उसे तो कोई जवाब न दे