पत्थर Poetry (page 21)

तुझ को खो देने का एहसास हुआ तेरे बा'द

इमरान साग़र

काँटों में ही कुछ ज़र्फ़-ए-समाअत नज़र आए

इमदाद निज़ामी

तेरी हर इक बात है नश्तर न छेड़

इमदाद अली बहर

जब कि सर पर वबाल आता है

इमदाद अली बहर

इस तरह ज़ीस्त बसर की कोई पुरसाँ न हुआ

इमदाद अली बहर

आतिश-ए-बाग़ ऐसे भड़की है कि जलती है हवा

इमदाद अली बहर

ने आदमी पसंद न इस को ख़ुदा पसंद

इम्दाद आकाश

जान हम तुझ पे दिया करते हैं

इमाम बख़्श नासिख़

चैन दुनिया में ज़मीं से ता-फ़लक दम भर नहीं

इमाम बख़्श नासिख़

शहर में ओले पड़े हैं सर सलामत है कहाँ

इमाम अाज़म

क़द बढ़ाने के लिए बौनों की बस्ती में चलो

इमाम अाज़म

जो मज़े आज तिरे ग़म के अज़ाबों में मिले

इमाम अाज़म

'इश्क़ी'-साहिब लिखना है तो कोई नई तहरीर लिखो

इलियास इश्क़ी

मस्जिद-ए-अहमरीं

इलियास बाबर आवान

ये जो तरतीब से बना हुआ मैं

इलियास बाबर आवान

कफ़ील-ए-साअ'त-ए-सय्यार रक्खा होता है

इलियास बाबर आवान

ग़मों की भीड़ में रस्ता बना के चलता हूँ

इलियास बाबर आवान

चेहरे पर ख़ुश-हाली ले कर आता हूँ

इलियास बाबर आवान

बाग़ इक दिन का है सो रात नहीं आने की

इलियास बाबर आवान

पहनाई

इज्तिबा रिज़वी

तेरी आँखों की चमक बस और इक पल है अभी

इफ़्तिख़ार नसीम

जिला-वतन हूँ मिरा घर पुकारता है मुझे

इफ़्तिख़ार नसीम

चाँद फिर तारों की उजली रेज़गारी दे गया

इफ़्तिख़ार नसीम

अपना सारा बोझ ज़मीं पर फेंक दिया

इफ़्तिख़ार नसीम

हर मुश्किल आसान बनाने वाला था

इफ़्तिख़ार फलक काज़मी

ख़्वाब देखने वाली आँखें पत्थर होंगी तब सोचेंगे

इफ़्तिख़ार आरिफ़

ख़ल्क़ ने इक मंज़र नहीं देखा बहुत दिनों से

इफ़्तिख़ार आरिफ़

मंज़िलें आईं तो रस्ते खो गए

इफ़्फ़त ज़र्रीं

ख़ूँ में तर सब्र की चादर कहाँ ले जाओगे

इफ़्फ़त अब्बास

वो यूँ सुबूत-ए-उरूज-ओ-ज़वाल देता था

इबरत मछलीशहरी

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