क़ैस Poetry (page 2)

एहसास की दीवार गिरा दी है चला जा

शोज़ेब काशिर

पहुँचा है आज क़ैस का याँ सिलसिला मुझे

शेर मोहम्मद ख़ाँ ईमान

नीमचा यार ने जिस वक़्त बग़ल में मारा

ज़ौक़

लाई हयात आए क़ज़ा ले चली चले

ज़ौक़

क्या क्या न तेरे सदमे से बाद-ए-ख़िज़ाँ गिरा

शैख़ अली बख़्श बीमार

ख़्वाब नादिम हैं कि ता'बीर दिखाने से गए

शाज़ तमकनत

अब क़ैस है कोई न कोई आबला-पा है

शमीम हनफ़ी

यादों की दीवार गिराता रहता हूँ

शाहबाज़ रिज़्वी

आ के सलासिल ऐ जुनूँ क्यूँ न क़दम ले ब'अद-ए-क़ैस

शाह नसीर

उठती घटा है किस तरह बोले वो ज़ुल्फ़ उठा कि यूँ

शाह नसीर

ख़ानदान-ए-क़ैस का मैं तो सदा से पीर हूँ

शाह नसीर

दिल जल्वा-गाह-ए-सूरत-ए-जानाना हो गया

शाह नसीर

देख तू यार-ए-बादा-कश! मैं ने भी काम क्या किया

शाह नसीर

क्या कहूँ तुम से मैं यारो कौन हूँ

शाह आसिम

बे-ख़ुदी में अजब मज़ा देखा

शाह आसिम

बला जाने किसी की हिज्र में इस दिल पे क्या गुज़री

शाग़िल क़ादरी

शगुफ़्ता होते ही मुरझा गई कली अफ़सोस

शाद लखनवी

ख़ुदा ही उस चुप की दाद देगा कि तुर्बतें रौंदे डालते हैं

शाद लखनवी

गोश कर फ़रियाद-ए-आशिक़ जान कर

शाद लखनवी

ये रात भयानक हिज्र की है काटेंगे बड़े आलाम से हम

शाद अज़ीमाबादी

सियाहकार सियह-रू ख़ता-शिआर आया

शाद अज़ीमाबादी

शुऊर-ए-क़ैस ने सहरा में ख़ुद-कुशी कर ली

सीन शीन आलम

दिल पे जब तेरा तसव्वुर छा गया

सीमाब सुल्तानपुरी

जल्वा-गाह-ए-दिल में मरते ही अँधेरा हो गया

सीमाब अकबराबादी

दिल तिरी याद में हर लम्हा तड़पता भी नहीं

सय्यद एहतिशाम हुसैन

नौबत-ए-क़ैस हो चुकी आख़िर

मोहम्मद रफ़ी सौदा

जो लोग रह गए हैं मिरी दास्ताँ से दूर

सरवर नेपाली

काली घटा कब आएगी फ़स्ल-ए-बहार में

सरदार गेंडा सिंह मशरिक़ी

है चमन में रहम गुलचीं को न कुछ सय्याद को

सख़ी लख़नवी

सोए हुओं में ख़्वाब से बेदार कौन है

सज्जाद बाक़र रिज़वी

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