क़ैस Poetry (page 4)

मिरा नाम क़ैस क्यूँ कर तिरे नाम तक न पहुँचे

रशीद रामपुरी

मैं जानता हूँ मोहब्बत में क्या नहीं करना

राना आमिर लियाक़त

हिसार-ए-ज़ात से निकलूँ तो तुझ से बात करूँ

राज कुमार क़ैस

पाबंद-ए-ग़म-ए-उल्फ़त ही रहे गो दर्द-ए-दहिंदाँ और सही

इरफ़ान अहमद मीर

सुपुर्द-ए-ग़म-ज़दगान-ए-सफ़-ए-वफ़ा हुआ मैं

इक़बाल कौसर

दिल-ए-मुज़्तर को हम कुछ इस तरह समझाए जाते हैं

इक़बाल हुसैन रिज़वी इक़बाल

ज़मीं से उट्ठी है या चर्ख़ पर से उतरी है

इंशा अल्लाह ख़ान

ये जो मुझ से और जुनूँ से याँ बड़ी जंग होती है देर से

इंशा अल्लाह ख़ान

वो जो शख़्स अपने ही ताड़ में सो छुपा है दिल ही की आड़ में

इंशा अल्लाह ख़ान

वो देखा ख़्वाब क़ासिर जिस से है अपनी ज़बाँ और हम

इंशा अल्लाह ख़ान

टुक क़ैस को छेड़-छाड़ कर इश्क़

इंशा अल्लाह ख़ान

नादाँ कहाँ तरब का सर-अंजाम और इश्क़

इंशा अल्लाह ख़ान

मिल मुझ से ऐ परी तुझे क़ुरआन की क़सम

इंशा अल्लाह ख़ान

हुस्न की जिंस ख़रीदार लिए फिरती है

इम्दाद इमाम असर

दिल से क्या पूछता है ज़ुल्फ़-ए-गिरह-गीर से पूछ

इम्दाद इमाम असर

दिल संग नहीं है कि सितमगर न भर आता

इम्दाद इमाम असर

साक़ी तिरे बग़ैर है महफ़िल से दिल उचाट

इमदाद अली बहर

ख़ुर्शीद फ़िराक़ में तपाँ है

इमदाद अली बहर

सब माया है

इब्न-ए-इंशा

लोग हिलाल-ए-शाम से बढ़ कर पल में माह-ए-तमाम हुए

इब्न-ए-इंशा

जब दहर के ग़म से अमाँ न मिली हम लोगों ने इश्क़ ईजाद किया

इब्न-ए-इंशा

जाने तू क्या ढूँढ रहा है बस्ती में वीराने में

इब्न-ए-इंशा

हमें तुम पे गुमान-ए-वहशत था हम लोगों को रुस्वा किया तुम ने

इब्न-ए-इंशा

दिल इश्क़ में बे-पायाँ सौदा हो तो ऐसा हो

इब्न-ए-इंशा

अर्श के तारे तोड़ के लाएँ काविश लोग हज़ार करें

इब्न-ए-इंशा

वारिद कोह-ए-बयाबाँ जब में दीवाना हुआ

हातिम अली मेहर

दिल ले गई वो ज़ुल्फ़-ए-रसा काम कर गई

हातिम अली मेहर

हम आप को तो इश्क़ में बर्बाद करेंगे

हसरत अज़ीमाबादी

फिर नए ख़्वाब बुनें फिर नई रंगत चाहें

हसन रिज़वी

फिर सजे बज़्म-ए-तरब ज़ुल्फ़ खुले शाना चले

हसन आबिद

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