क़ैस Poetry (page 6)

अपने दीदार की हसरत में तू मुझ को सरापा दिल कर दे

बेदम शाह वारसी

झोंके आते हैं बू-ए-उल्फ़त के

बयान यज़दानी

सब काएनात-ए-हुस्न का हासिल लिए हुए

बासित भोपाली

मैं अगर रोने लगूँ रुतबा-ए-वाला बढ़ जाए

मिर्ज़ा रज़ा बर्क़

जो है याँ अासाइश-ए-रंज-ओ-मेहन में मस्त है

बहराम जी

मैं सिसकता रह गया और मर गए फ़रहाद ओ क़ैस

ज़फ़र

फ़रहाद ओ क़ैस ओ वामिक़ ओ अज़रा थे चार दोस्त

ज़फ़र

टुकड़े नहीं हैं आँसुओं में दिल के चार पाँच

ज़फ़र

जब कभी दरिया में होते साया-अफ़गन आप हैं

ज़फ़र

क़दमों से इतना दूर किनारा कभी न था

बद्र-ए-आलम ख़लिश

ताज़ा हवा बहार की दिल का मलाल ले गई

अज़ीज़ हामिद मदनी

लिखी हुई जो तबाही है उस से क्या जाता

अज़ीज़ हामिद मदनी

हक़ बना बातिल बना नाक़िस बना कामिल बना

आज़ाद अंसारी

मर गया ग़म में तिरे हाए में रोता रोता

आसिफ़ुद्दौला

ज़मीं कहीं है मिरी और आसमान कहीं

अासिफ़ शफ़ी

सदा-ए-क़ैस शौक़-ए-दश्त-पैमाई नमी-दानम

अासिफ़ अंजुम

इक दिन ख़ुद को अपने अंदर फेंकूँगा

अासिफ़ अंजुम

इस जौर ओ जफ़ा से तिरे ज़िन्हार न टूटे

अशरफ़ अली फ़ुग़ाँ

दिल किसी ख़्वाहिश का उकसाया हुआ

अशफ़ाक़ नासिर

क़हर है थोड़ी सी भी ग़फ़लत तरीक़-ए-इश्क़ में

असग़र गोंडवी

कोई महमिल-नशीं क्यूँ शाद या नाशाद होता है

असग़र गोंडवी

कौन था उस के हवा-ख़्वाहों में जो शामिल न था

असग़र गोंडवी

है दिल-ए-नाकाम-ए-आशिक़ में तुम्हारी याद भी

असग़र गोंडवी

निगाह तेज़ शुऊ'र-ए-बुलंद रखते हैं

अर्शी भोपाली

यार के नर्गिस-ए-बीमार का बीमार रहा

अरशद अली ख़ान क़लक़

यगाना उन का बेगाना है बेगाना यगाना है

अरशद अली ख़ान क़लक़

रोज़-ए-अव्वल से असीर ऐ दिल-ए-नाशाद हैं हम

अरशद अली ख़ान क़लक़

नहीं चमके ये हँसने में तुम्हारे दाँत अंजुम से

अरशद अली ख़ान क़लक़

हम ने एहसान असीरी का न बर्बाद किया

अरशद अली ख़ान क़लक़

आएँगे वो तो आप में हरगिज़ न आएँगे

अरशद अली ख़ान क़लक़

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