जजमेंट डे Poetry (page 13)

नज़्म

गोपाल मित्तल

ज़िंदगी मर्ग की मोहलत ही सही

ग़ुलाम मौला क़लक़

तेरे वादे का इख़्तिताम नहीं

ग़ुलाम मौला क़लक़

रिश्ता-ए-रस्म-ए-मोहब्बत मत तोड़

ग़ुलाम मौला क़लक़

राज़-ए-दिल दोस्त को सुना बैठे

ग़ुलाम मौला क़लक़

न पहुँचे हाथ जिस का ज़ोफ़ से ता-ज़ीस्त दामन तक

ग़ुलाम मौला क़लक़

न हो आरज़ू कुछ यही आरज़ू है

ग़ुलाम मौला क़लक़

कोई कैसा ही साबित हो तबीअ'त आ ही जाती है

ग़ुलाम मौला क़लक़

हम तो याँ मरते हैं वाँ उस को ख़बर कुछ भी नहीं

ग़ुलाम मौला क़लक़

चल दिए हम ऐ ग़म-ए-आलम विदाअ'

ग़ुलाम मौला क़लक़

इक हुजूम-ए-ग़म-ओ-कुलफ़त है ख़ुदा ख़ैर करे

ग़ुलाम भीक नैरंग

पत्थर

ग़ज़नफ़र

ख़ून-ए-दिल मुझ से तिरा रंग-ए-हिना माँगे है

ग़यास अंजुम

सँभलने दे मुझे ऐ ना-उमीदी क्या क़यामत है

ग़ालिब

जाते हुए कहते हो क़यामत को मिलेंगे

ग़ालिब

फ़र्दा-ओ-दी का तफ़रक़ा यक बार मिट गया

ग़ालिब

दम लिया था न क़यामत ने हनूज़

ग़ालिब

ज़िक्र मेरा ब-बदी भी उसे मंज़ूर नहीं

ग़ालिब

ज़-बस-कि मश्क़-ए-तमाशा जुनूँ-अलामत है

ग़ालिब

वारस्ता उस से हैं कि मोहब्बत ही क्यूँ न हो

ग़ालिब

सादगी पर उस की मर जाने की हसरत दिल में है

ग़ालिब

रहा गर कोई ता-क़यामत सलामत

ग़ालिब

फिर मुझे दीदा-ए-तर याद आया

ग़ालिब

निकोहिश है सज़ा फ़रियादी-ए-बे-दाद-ए-दिलबर की

ग़ालिब

नहीं कि मुझ को क़यामत का ए'तिक़ाद नहीं

ग़ालिब

मिरी हस्ती फ़ज़ा-ए-हैरत आबाद-ए-तमन्ना है

ग़ालिब

लाज़िम था कि देखो मिरा रस्ता कोई दिन और

ग़ालिब

लरज़ता है मिरा दिल ज़हमत-ए-मेहर-ए-दरख़्शाँ पर

ग़ालिब

कभी नेकी भी उस के जी में गर आ जाए है मुझ से

ग़ालिब

हर क़दम दूरी-ए-मंज़िल है नुमायाँ मुझ से

ग़ालिब

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