जजमेंट डे Poetry (page 14)

है बज़्म-ए-बुताँ में सुख़न आज़ुर्दा-लबों से

ग़ालिब

एक एक क़तरे का मुझे देना पड़ा हिसाब

ग़ालिब

दिल से तिरी निगाह जिगर तक उतर गई

ग़ालिब

सदाक़तों के दहकते शोलों पे मुद्दतों तक चला किए हम

फ़ुज़ैल जाफ़री

घर से बे-ज़ार हूँ कॉलेज में तबीअ'त न लगे

फ़ुज़ैल जाफ़री

उधार

फ़ुर्क़त काकोरवी

सितारों से उलझता जा रहा हूँ

फ़िराक़ गोरखपुरी

रस्म-ओ-राह-ए-दहर क्या जोश-ए-मोहब्बत भी तो हो

फ़िराक़ गोरखपुरी

हो के सर-ता-ब-क़दम आलम-ए-असरार चला

फ़िराक़ गोरखपुरी

हिज्र-ओ-विसाल-ए-यार का पर्दा उठा दिया

फ़िराक़ गोरखपुरी

हर नाला तिरे दर्द से अब और ही कुछ है

फ़िराक़ गोरखपुरी

दौर-ए-आग़ाज़-ए-जफ़ा दिल का सहारा निकला

फ़िराक़ गोरखपुरी

आज भी क़ाफ़िला-ए-इश्क़ रवाँ है कि जो था

फ़िराक़ गोरखपुरी

आई है कुछ न पूछ क़यामत कहाँ कहाँ

फ़िराक़ गोरखपुरी

हर एक आँख में आँसू हर एक लब पे फ़ुग़ाँ

फ़सीह अकमल

जो तू नहीं है तो लगता है अब कि तू क्या है

फ़सीह अकमल

कोहसार का ख़ूगर है न पाबंद-ए-गुलिस्ताँ

फ़ारूक़ बाँसपारी

वो रोज़-ओ-शब भी नहीं हैं वो रंग-ओ-बू भी नहीं

फ़ारिग़ बुख़ारी

वो रोज़-ओ-शब भी नहीं है वो रंग-ओ-बू भी नहीं

फ़ारिग़ बुख़ारी

तेरी ख़ातिर ये फ़ुसूँ हम ने जगा रक्खा है

फ़ारिग़ बुख़ारी

तुम्हें भी भूलने की कोशिशें कीं

फ़रीद परबती

रग-ओ-पै में सरायत कर गया वो

फ़रीद परबती

एक मुद्दत से यहाँ ठहरा हुआ पानी है

फ़रह इक़बाल

दिन में भी हसरत-ए-महताब लिए फिरते हैं

फ़राग़ रोहवी

ज़िक्र जब छिड़ गया क़यामत का

फ़ानी बदायुनी

ये किस क़यामत की बेकसी है ज़मीं ही अपना न यार मेरा

फ़ानी बदायुनी

तिरी तिरछी नज़र का तीर है मुश्किल से निकलेगा

फ़ानी बदायुनी

मुझ पे रखते हैं हश्र में इल्ज़ाम

फ़ानी बदायुनी

मर कर मरीज़-ए-ग़म की वो हालत नहीं रही

फ़ानी बदायुनी

ले ए'तिबार-ए-वादा-ए-फ़र्दा नहीं रहा

फ़ानी बदायुनी

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