तुम्हें भी भूलने की कोशिशें कीं
कि ख़ुद पर भी क़यामत कर गया वो
Ahmad Faraz
Faiz Ahmad Faiz
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Anwar Masood
Javed Akhtar
Jaun Eliya
Rahat Indori
Mir Taqi Mir
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ख़ानों में कई ख़ुद को बट कर आया
रौशन कभी हो जाएँगे दिन रात मिरे
जब हश्र में हों पेश अमल के दफ़्तर
क़ाएम रखें आसूदा मकाँ हम दोनों
किसी पे करना नहीं ए'तिबार मेरी तरह
सिकंदर हूँ तलाश-ए-आब-ए-हैवाँ रोज़ करता हूँ
कभी मेरी तलब कच्चे घड़े पर पार उतरती है
'फ़रीद' इक दिन सहारे ज़िंदगी के टूट जाएँगे
फैली है अजब आग तुझे इस से क्या
अक्सर मैं यहाँ मिस्ल-ए-समुंदर आया
तमन्ना अपनी उन पर आश्कारा कर रहा हूँ मैं