रौशन कभी हो जाएँगे दिन रात मिरे
बस एक वही जाने है जज़्बात मिरे
मुझ को तो फ़क़त उस के करम पर है नज़र
हैं मद्द-ए-नज़र उस के हालात मिरे
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जब हश्र में हों पेश अमल के दफ़्तर
रग-ओ-पै में सरायत कर गया वो
किसी पे करना नहीं ए'तिबार मेरी तरह
बगूला बन के उड़ा ख़्वाहिशों के सहरा में
हमा-जिहत मिरी तलब जिस की मिसाल अब नहीं
होंटों पे दुआ आई मगर आया न तू
ख़ाशाक-ए-वजूद एक भँवर में रहता
ऐ शाह-ए-जुनूँ तेरे इरफ़ाँ को सलाम
तमन्ना अपनी उन पर आश्कारा कर रहा हूँ मैं
'फ़रीद' इक दिन सहारे ज़िंदगी के टूट जाएँगे
तुम्हें भी भूलने की कोशिशें कीं
हर मसअले की तह में उतरना नहीं ठीक