होंटों पे दुआ आई मगर आया न तू
फिर बाद-ए-सबा आई मगर आया न तू
सोंधी सोंधी महक से महका माहौल
सावन की घटा आई मगर आया न तू
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बगूला बन के उड़ा ख़्वाहिशों के सहरा में
हमा-जिहत मिरी तलब जिस की मिसाल अब नहीं
सिकंदर हूँ तलाश-ए-आब-ए-हैवाँ रोज़ करता हूँ
तस्कीन-ए-दिल और रूह का आराम पिला
तमन्ना अपनी उन पर आश्कारा कर रहा हूँ मैं
जीता हूँ, कहाँ तक मैं जीता ही मरूँ
कभी मेरी तलब कच्चे घड़े पर पार उतरती है
ख़ानों में कई ख़ुद को बट कर आया
क़ाएम रखें आसूदा मकाँ हम दोनों
रौशन कभी हो जाएँगे दिन रात मिरे
ख़ाशाक-ए-वजूद एक भँवर में रहता