जीता हूँ, कहाँ तक मैं जीता ही मरूँ
क़ुदरत का तिरी क्यूँ मैं न दम भरूँ
ले जाऊँ मैं किस के पास अपना दुखड़ा
उम्मीद तुझी से है जो फ़रियाद करूँ
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ऐ शाह-ए-जुनूँ तेरे इरफ़ाँ को सलाम
तस्कीन-ए-दिल और रूह का आराम पिला
हमा-जिहत मिरी तलब जिस की मिसाल अब नहीं
कभी मेरी तलब कच्चे घड़े पर पार उतरती है
तुम्हें भी भूलने की कोशिशें कीं
रौशन कभी हो जाएँगे दिन रात मिरे
'फ़रीद' इक दिन सहारे ज़िंदगी के टूट जाएँगे
किसी पे करना नहीं ए'तिबार मेरी तरह
अक्सर मैं यहाँ मिस्ल-ए-समुंदर आया
तमन्ना अपनी उन पर आश्कारा कर रहा हूँ मैं
बगूला बन के उड़ा ख़्वाहिशों के सहरा में