रास्ता Poetry (page 41)

तासीर-ए-बर्क़-ए-हुस्न जो उन के सुख़न में थी

हसरत मोहानी

सियहकार थे बा-सफ़ा हो गए हम

हसरत मोहानी

रोग दिल को लगा गईं आँखें

हसरत मोहानी

पैरव-ए-मस्लक-ए-तस्लीम-ओ-रज़ा होते हैं

हसरत मोहानी

ख़ूब-रूयों से यारियाँ न गईं

हसरत मोहानी

हाइल थी बीच में जो रज़ाई तमाम शब

हसरत मोहानी

चुपके चुपके रात दिन आँसू बहाना याद है

हसरत मोहानी

अपना सा शौक़ औरों में लाएँ कहाँ से हम

हसरत मोहानी

आसान-ए-हक़ीकी है न कुछ सहल-ए-मजाज़ी

हसरत मोहानी

जिस का मयस्सर न था भर के नज़र देखना

हसरत अज़ीमाबादी

खोए हुए पलों की कोई बात भी तो हो

हसनैन आक़िब

अब के यारो बरखा-रुत ने मंज़र क्या दिखलाए हैं

हसन रिज़वी

आँख की राह से बुझते हुए लम्हे उतरे

हसन निज़ामी

वो जो दर्द था तिरे इश्क़ का वही हर्फ़ हर्फ़-ए-सुख़न में है

हसन नईम

वहशत-ए-जाँ को पयाम-ए-निगह-ए-नाज़ तो दो

हसन नईम

रश्क अपनों को यही है हम ने जो चाहा मिला

हसन नईम

रात गुज़री कि शब-ए-वस्ल का पैग़ाम मिला

हसन नईम

पैकर-ए-नाज़ पे जब मौज-ए-हया चलती थी

हसन नईम

लुत्फ़-ए-आग़ाज़ मिला लज़्ज़त-ए-अंजाम के बा'द

हसन नईम

ख़्वाब की राह में आए न दर-ओ-बाम कभी

हसन नईम

जो ग़म के शो'लों से बुझ गए थे हम उन के दाग़ों का हार लाए

हसन नईम

लोग सुब्ह ओ शाम की नैरंगियाँ देखा किए

हसन नज्मी सिकन्दरपुरी

तारीख़ की अदालत

हसन हमीदी

कमाँ उठाओ कि हैं सामने निशाने बहुत

हसन अज़ीज़

जो नक़्श-ए-बर्ग-ए-करम डाल डाल है उस का

हसन अज़ीज़

अजीब हाल है सहरा-नशीं हैं घर वाले

हसन अज़ीज़

फाँदती फिरती हैं एहसास के जंगल रूहें

हसन अख्तर जलील

दिल की तरफ़ निगाह-ए-तग़ाफ़ुल रहा करे

हसन अख्तर जलील

आरज़ू की हमा-हामी और मैं

हसन अख्तर जलील

आई पतझड़ गिरे फ़स्ल-ए-गुल के निशाँ रात-भर में

हसन अख्तर जलील

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