साथ Poetry (page 55)

दर्द हल्का है साँस भारी है

गुलज़ार

उठो गले से लिपट जाओ फिर निखर लेना

गुलशनुद्दौला बहार

किसी की याद का चेहरा

गुलनाज़ कौसर

एक परछाईं तसव्वुर की मिरे साथ रहे

गुलनार आफ़रीन

वो चराग़-ए-ज़ीस्त बन कर राह में जलता रहा

गुलनार आफ़रीन

शजर-ए-उम्मीद भी जल गया वो वफ़ा की शाख़ भी जल गई

गुलनार आफ़रीन

न साथ देगा कोई राह आश्ना मेरा

गुलनार आफ़रीन

दिल ने इक आह भरी आँख में आँसू आए

गुलनार आफ़रीन

यूँ तो दिल हर कदाम रखता है

ग़ुलाम यहया हुज़ूर अज़ीमाबादी

उस शोख़ से क्या कीजिए इज़्हार-ए-तमन्ना

ग़ुलाम यहया हुज़ूर अज़ीमाबादी

तू अंग अंग में ख़ुश्बू सी बन गया होगा

गुलाम जीलानी असग़र

दर्द-ए-दिल के साथ क्या मेरे मसीहा कर दिया

गुहर खैराबादी

क्यूँकर न ख़ुश हो सर मिरा लटक्का के दार में

गोया फ़क़ीर मोहम्मद

राह-ए-उल्फ़त में मक़ामात पुराने आए

गोविन्द गुलशन

तड़प तो आज भी कुछ कम नहीं है

गोर बचन सिंह दयाल मग़मूम

बात कुछ भी न थी फ़साना हुआ

गोर बचन सिंह दयाल मग़मूम

अब के सावन में शरारत ये मिरे साथ हुई

गोपालदास नीरज

जब चले जाएँगे हम लौट के सावन की तरह

गोपालदास नीरज

नज़्म

गोपाल मित्तल

कज-कुलाही की अदा याद आई

गोपाल मित्तल

तेरे मेरे ख़्वाब जुदा

गिरिजा व्यास

पहले उस ने मुझे चुनवा दिया दीवार के साथ

ग़ुलाम मुर्तज़ा राही

रखता नहीं है दश्त सरोकार आब से

ग़ुलाम मुर्तज़ा राही

कितनी ढल गई उम्र तुम्हारी हैरत है

ग़ुलाम मोहम्मद वामिक़

कहफ़-उल-क़हत

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

''अटलांटिक सिटी''

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

वो बे-दिली में कभी हाथ छोड़ देते हैं

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

लब पे सुर्ख़ी की जगह जो मुस्कुराहट मल रहे हैं

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

कहीं लोग तन्हा कहीं घर अकेले

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

अकेला दिन है कोई और न तन्हा रात होती है

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

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