सामने Poetry (page 4)

बिखर बिखर गए अल्फ़ाज़ से अदा न हुए

ज़फ़र इक़बाल

बहुत सुलझी हुई बातों को भी उलझाए रखते हैं

ज़फ़र इक़बाल

अभी किसी के न मेरे कहे से गुज़रेगा

ज़फ़र इक़बाल

रौशनी परछाईं पैकर आख़िरी

ज़फ़र गोरखपुरी

ग़म इतने अपने दामन-ए-दिल से लिपट गए

ज़फ़र अंसारी ज़फ़र

लबों तक आया ज़बाँ से मगर कहा न गया

यज़दानी जालंधरी

किसी कशिश के किसी सिलसिले का होना था

यासमीन हबीब

इक दिल में था इक सामने दरिया उसे कहना

यासमीन हबीब

समझ सका न उसे मैं क़ुसूर मेरा है

यशब तमन्ना

तअल्लुक़ उस से अगरचे मिरा ख़राब रहा

यशब तमन्ना

था उस का जैसा अमल वो ही यार मैं भी करूँ

याक़ूब आरिफ़

ख़ल्वत हो और शराब हो माशूक़ सामने

इनामुल्लाह ख़ाँ यक़ीन

वाँ नक़ाब उट्ठी कि सुब्ह-ए-हश्र का मंज़र खुला

यगाना चंगेज़ी

बैठा हूँ पाँव तोड़ के तदबीर देखना

यगाना चंगेज़ी

देख कर ख़ुश-रंग उस गुल-पैरहन के हाथ पाँव

वज़ीर अली सबा लखनवी

ऐ सबा जज़्ब पे जिस दम दिल-ए-नाशाद आया

वज़ीर अली सबा लखनवी

पेश-गोई

वज़ीर आग़ा

ख़ुदा के सामने जो सर यक़ीं के साथ झुक जाए

वासिफ़ देहलवी

वो जिस की जुस्तुजू-ए-दीद में पथरा गईं आँखें

वासिफ़ देहलवी

अगर ख़ू-ए-तहम्मुल हो तो कोई ग़म नहीं होता

वासिफ़ देहलवी

उस की तस्वीर क्या लगी हुई है

वसीम ताशिफ़

आते आते मिरा नाम सा रह गया

वसीम बरेलवी

इश्क़ में ख़ुद-सरी नहीं होती

वक़ार बिजनोरी

ख़ूनी क़िला

वामिक़ जौनपुरी

देहली

वामिक़ जौनपुरी

आप की नज़रों में शायद इस लिए अच्छा हूँ मैं

वलीउल्लाह वली

तुम जानते हो किस लिए वो मुझ से गया लड़

वलीउल्लाह मुहिब

जपे है विर्द सा तुझ से सनम के नाम को शैख़

वली उज़लत

मावरा

वहीद अख़्तर

तन्हाई मुझे देखती है

वहीद अहमद

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