ख़ल्वत हो और शराब हो माशूक़ सामने
ज़ाहिद तुझे क़सम है जो तू हो तो क्या करे
Parveen Shakir
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Jaun Eliya
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Allama Iqbal
Wasi Shah
Rahat Indori
Mohsin Naqvi
Mir Taqi Mir
Faiz Ahmad Faiz
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ये वो आँसू हैं जिन से ज़ोहरा आतिशनाक हो जावे
नहीं मा'लूम अब की साल मय-ख़ाने पे क्या गुज़रा
चला आँखों से जब कश्ती में वो महबूब जाता है
सौ सौ हैं इल्तिफ़ात तग़ाफ़ुल में यार के
अगरचे इश्क़ में आफ़त है और बला भी है
दोस्ती बद बला है इस में ख़ुदा
सरीर-ए-सल्तनत से आस्तान-ए-यार बेहतर था
कार-ए-दीं उस बुत के हाथों हाए अबतर हो गया
बहार आई है क्या क्या चाक जैब-ए-पैरहन करते
चश्म-ए-तर पर गर नहीं करता हवा पर रहम कर
इस अश्क ओ आह में सौदा बिगड़ न जाए कहीं