सौ सौ हैं इल्तिफ़ात तग़ाफ़ुल में यार के
बेगानगी से उस की कोई आश्ना नहीं
Mir Taqi Mir
Habib Jalib
Wasi Shah
Anwar Masood
Jaun Eliya
Mohsin Naqvi
Allama Iqbal
Faiz Ahmad Faiz
Parveen Shakir
Rahat Indori
Gulzar
Ahmad Faraz
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(860) Peoples Rate This
चश्म-ए-तर पर गर नहीं करता हवा पर रहम कर
अगरचे इश्क़ में आफ़त है और बला भी है
पड़ गई दिल में तिरे तशरीफ़ फ़रमाने में धूम
मिस्र में हुस्न की वो गर्मी-ए-बाज़ार कहाँ
उम्र आख़िर है जुनूँ कर लूँ बहाराँ फिर कहाँ
ये वो आँसू हैं जिन से ज़ोहरा आतिशनाक हो जावे
हक़ मुझे बातिल-आश्ना न करे
इस क़दर ग़र्क़ लहू में ये दिल-ए-ज़ार न था
इस अश्क ओ आह में सौदा बिगड़ न जाए कहीं
उम्र फ़रियाद में बर्बाद गई कुछ न हुआ
तसव्वुर उस दहान-ए-तंग का रुख़्सत नहीं देता