ये वो आँसू हैं जिन से ज़ोहरा आतिशनाक हो जावे
अगर पीवे कोई उन को तो जल कर ख़ाक हो जावे
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हक़ मुझे बातिल-आश्ना न करे
सरीर-ए-सल्तनत से आस्तान-ए-यार बेहतर था
चश्म-ए-तर पर गर नहीं करता हवा पर रहम कर
पड़ गई दिल में तिरे तशरीफ़ फ़रमाने में धूम
नहीं मा'लूम अब की साल मय-ख़ाने पे क्या गुज़रा
तसव्वुर उस दहान-ए-तंग का रुख़्सत नहीं देता
अगरचे इश्क़ में आफ़त है और बला भी है
ख़ल्वत हो और शराब हो माशूक़ सामने
दोस्ती बद बला है इस में ख़ुदा
कार-ए-दीं उस बुत के हाथों हाए अबतर हो गया
शहर में था न तिरे हुस्न का ये शोर कभू