समझ सका न उसे मैं क़ुसूर मेरा है
कि मेरे सामने तो वो खुली किताब रहा
Mir Taqi Mir
Ahmad Faraz
Wasi Shah
Javed Akhtar
Faiz Ahmad Faiz
Anwar Masood
Allama Iqbal
Gulzar
Parveen Shakir
Jaun Eliya
Mohsin Naqvi
Rahat Indori
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(821) Peoples Rate This
तअल्लुक़ उस से अगरचे मिरा ख़राब रहा
वस्ल भी हिज्र था विसाल न था
कमाल-ए-शौक़-ए-सफ़र भी उधर ही जाता है
तर्क उल्फ़त में भी उस ने ये रिवायत रक्खी
पढ़ चुके हैं निसाब-ए-तंहाई
चाह थी मेहर थी मोहब्बत थी
ऐसा भी नहीं दर्द ने वहशत नहीं की है
दर्द की लहर थी गुज़र भी गई
वो जो एक चेहरा दमक रहा है जमाल से
हक़ीक़तों से मफ़र चाही थी 'यशब' मैं ने