ख़ुदा के सामने जो सर यक़ीं के साथ झुक जाए
किसी ताक़त के आगे फिर कभी वो ख़म नहीं होता
Jaun Eliya
Ahmad Faraz
Mir Taqi Mir
Allama Iqbal
Rahat Indori
Javed Akhtar
Gulzar
Mohsin Naqvi
Anwar Masood
Parveen Shakir
Wasi Shah
Habib Jalib
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(502) Peoples Rate This
ये महफ़िल आज ना-अहलों से जो मामूर है 'वासिफ़'
ज़ुलेख़ा के वक़ार-ए-इश्क़ को सहरा से क्या निस्बत
अगर ख़ू-ए-तहम्मुल हो तो कोई ग़म नहीं होता
वफ़ूर-ए-बे-ख़ुदी में रख दिया सर उन के क़दमों पर
क़िस्मत की तीरगी की कहानी न पूछिए
ज़र्रा हरीफ़-ए-मेहर दरख़्शाँ है आज कल
कहते हैं सर-ए-राह मुनासिब नहीं मिलना
किसी को याद कर के एक दिन ख़ल्वत में रोया था
वो जिस की जुस्तुजू-ए-दीद में पथरा गईं आँखें
क्या ग़म जो हसरतों के दिए बुझ गए तमाम
दामन के दाग़ अश्क-ए-नदामत ने धो दिए
तिरी उल्फ़त में जितनी मेरी ज़िल्लत बढ़ती जाती है