छाया Poetry (page 20)

जिसे भी देखिए प्यासा दिखाई देता है

बदीउज़्ज़माँ ख़ावर

किस ने कहा है दीवारों पर साया करता है सूरज

अज़रक़ अदीम

कुछ नहीं होता शब भर सोचों का सरमाया होता है

अज़रक़ अदीम

दरीदा-पैरहनों में शुमार हम भी हैं

अज़्म शाकरी

कहानी

अज़ीज़ तमन्नाई

अहद-नामा-ए-इमराेज़

अज़ीज़ क़ैसी

ये किस मक़ाम पे लाया गया ख़ुदाया मुझे

अज़ीज़ नबील

धूप के जाते ही मर जाऊँगा मैं

अज़ीज़ नबील

वो मिरा साया मिरे पीछे लगा कर खो गया

अज़ीज़ बानो दाराब वफ़ा

फूँक देंगे मिरे अंदर के उजाले मुझ को

अज़ीज़ बानो दाराब वफ़ा

मैं उस की बात के लहजे का ए'तिबार करूँ

अज़ीज़ बानो दाराब वफ़ा

अलावा इक चुभन के क्या है ख़ुद से राब्ता मेरा

अज़ीज़ बानो दाराब वफ़ा

चाहा है जिस का साया शजर वो बबूल है

अज़हर नैयर

इस रास्ते में जब कोई साया न पाएगा

अज़हर इनायती

इस रास्ते में जब कोई साया न पाएगा

अज़हर इनायती

जगह फूलों की रखते हैं घना साया बनाते हैं

अज़हर अदीब

दरीचों में चराग़ों की कमी महसूस होती है

अज़हर अदीब

कौन गुज़रा था मेहराब-ए-जाँ से अभी ख़ामुशी शोर भरता हुआ

अतीक़ुल्लाह

गिरती हुई दीवार का साया था तिरा साथ

अतहर राज़

फूलों से बहारों में जुदा थे तो हमीं थे

अतहर राज़

ये धूप तो हर रुख़ से परेशाँ करेगी

अतहर नफ़ीस

कभी साया है कभी धूप मुक़द्दर मेरा

अतहर नफ़ीस

कभी साया है कभी धूप मुक़द्दर मेरा

अतहर नफ़ीस

गुज़िश्ता रात कोई चाँद घर में उतरा था

अतीक़ अंज़र

दिल वो सहरा है जहाँ हसरत-ए-साया भी नहीं

अता शाद

ज़िंदगी आईना है आईना-आराई है

अता शाद

सर पे सूरज हो मगर साया न हो ऐसा न था

अता आबिदी

किस से मोहब्बत है

असरार-उल-हक़ मजाज़

वो शख़्स जो नज़र आता था हर किसी की तरह

असरार ज़ैदी

जब उस की तस्वीर बनाई जाती है

असलम राशिद

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