वृक्षारोपण Poetry (page 10)
हवा की चादर-ए-सद-चाक ओढ़े जा रहे हैं
रऊफ़ अमीर
सौदा-ए-सज्दा शाम-ओ-सहर मेरे सर में है
रंजूर अज़ीमाबादी
इस सदी का जब कभी ख़त्म-ए-सफ़र देखेंगे लोग
रम्ज़ अज़ीमाबादी
ऐब जो मुझ में हैं मेरे हैं हुनर तेरा है
रम्ज़ अज़ीमाबादी
हुक्म-ए-मुर्शिद पे ही जी उठना है मर जाना है
राकिब मुख़्तार
चराग़ बुझने लगे और छाई तारीकी
राकिब मुख़्तार
हरी सुनहरी ख़ाक उड़ाने वाला मैं
राजेन्द्र मनचंदा बानी
शफ़क़ शजर मौसमों के ज़ेवर नए नए से
राजेन्द्र मनचंदा बानी
मैं उस की बात की तरदीद करने वाला था
राजेन्द्र मनचंदा बानी
हरी सुनहरी ख़ाक उड़ाने वाला मैं
राजेन्द्र मनचंदा बानी
इक गुल-ए-तर भी शरर से निकला
राजेन्द्र मनचंदा बानी
यूँ देखिए तो आँधी में बस इक शजर गया
राजेश रेड्डी
फूल ज़मीन पर गिरा फिर मुझे नींद आ गई
रईस फ़रोग़
हम ने ऐ दोस्त रिफ़ाक़त से भला क्या पाया
रईस अमरोहवी
दीदनी है बहार का मंज़र
रईस अमरोहवी
लहू आँखों में रौशन है ये मंज़र देखना अब के
राही कुरैशी
ये कैसा गुल खिलाया है शजर ने
राही फ़िदाई
जो बे-रुख़ी का रंग बहुत तेज़ मुझ में है
इरफ़ान सत्तार
कितनी दूर से चलते चलते ख़्वाब-नगर तक आई हूँ
इरम ज़ेहरा
छतों पे आग रही बाम-ओ-दर पे धूप रही
इक़बाल उमर
मूँद कर आँखें तलाश-ए-बहर-ओ-बर करने लगे
इक़बाल साजिद
ज़मीं मदार से अपने अगर निकल जाए
इक़बाल नवेद
बर्ग ठहरे न जब समर ठहरे
इक़बाल अासिफ़
हरा-भरा था चमन में शजर अकेला था
इंतिख़ाब अालम
बैठ जाता था मैं थक कर अपने तन की छाँव में
इंतिख़ाब अालम
फबती तिरे मुखड़े पे मुझे हूर की सूझी
इंशा अल्लाह ख़ान
अश्क मिज़्गान-ए-तर की पूँजी है
इंशा अल्लाह ख़ान
सीप मुट्ठी में है आफ़ाक़ भी हो सकता है
इंजील सहीफ़ा
लोग पाबंद-ए-सलासिल हैं मगर ख़ामोश हैं
इमरान शनावर
मैं शजर हूँ और इक पत्ता है तू
इमरान हुसैन आज़ाद
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