वृक्षारोपण Poetry (page 9)

ऐसी नहीं है बात कि क़द अपने घट गए

साग़र आज़मी

किया है ख़ुद ही गिराँ ज़ीस्त का सफ़र मैं ने

सईद नक़वी

सफ़र ला सफ़र

सईद अहमद

बद-गुमान

सईद अहमद

खुलता है यूँ हवा का दरीचा समझ लिया

सईद अहमद

यूँ तो हर एक शख़्स ही तालिब समर का है

सादिक़ नसीम

इक सफ़र पर उसे भेज कर आ गए

साबिर वसीम

इन पत्थरों के शहर में दिल का गुज़र कहाँ

सबा इकराम

जो हमारे सफ़र का क़िस्सा है

सबा अकबराबादी

ये रात दिन का बदलना नज़र में रहता है

सादुल्लाह शाह

अब तो यूँ लब पे मिरे हर्फ़-ए-सदाक़त आए

रूही कंजाही

मोहब्बत का सफ़र हे और मैं हूँ

रिज़वानूरर्ज़ा रिज़वान

शहर-ए-शोर-ओ-शर तन्हा घर के बाम-ओ-दर तन्हा

रिफ़अत सरोश

चाहतों का जो शजर है दोस्तो

रिफ़अत अल हुसैनी

हसीन दुनिया उजड़ गई तो

रेहान अल्वी

किसी के ज़ख़्म पर अश्कों का फाहा रख दिया जाए

रज़ा मौरान्वी

सिलसिले ये कैसे हैं टूट कर नहीं मिलते

रउफ़ ख़लिश

इस ख़ार-मिज़ाजी में फूलों की तरह खिलना

रउफ़ ख़लिश

पत्ते तमाम हल्क़ा-ए-सरसर में रह गए

रऊफ़ ख़ैर

जवाँ रुतों में लगाए हुए शजर अपने

रासिख़ इरफ़ानी

ये मोहब्बत का वार है साहब

राशिद क़य्यूम अनसर

इक घना सा शजर मिरे बाज़ू

रशीद इमकान

कोई साया न शजर याद आया

राशिद हामिदी

चाँद तन्हा है कहकशाँ तन्हा

रशीदुज़्ज़फ़र

उम्र गुज़री रहगुज़र के आस-पास

रसा चुग़ताई

रात हम ने जहाँ बसर की है

रसा चुग़ताई

'मीर'-जी से अगर इरादत है

रसा चुग़ताई

सर से उतरे नहीं फूल मंज़िल की धुन हम-सफ़र बात सुन

रऊफ़ अमीर

परिंदे होते अगर हम हमारे पर होते

रऊफ़ अमीर

झुलसती धूप में ठंडी हवा का झोंका भेज

रऊफ़ अमीर

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