शाखा Poetry (page 13)

लख़्त-ए-जिगर को क्यूँकर मिज़्गान-ए-तर सँभाले

हैदर अली आतिश

वो हम-कनार है जाम-ए-शराब हाथ में है

हफ़ीज़ जौनपुरी

शहर वीराँ उदास हैं गलियाँ

हबीब जालिब

गुलशन की फ़ज़ा धुआँ धुआँ है

हबीब जालिब

नफ़स नफ़स न कहीं जाए राएगाँ अपना

हबीब राहत हबाब

फ़रियाद भी मैं कर न सका बे-ख़बरी से

हबीब मूसवी

अब तलक तुंद हवाओं का असर बाक़ी है

हबाब हाश्मी

हाथ छूटें भी तो रिश्ते नहीं छोड़ा करते

गुलज़ार

शहतूत की शाख़ पे

गुलज़ार

हिरासत

गुलज़ार

अकेले

गुलज़ार

तुझ को देखा है जो दरिया ने इधर आते हुए

गुलज़ार

कहीं तो गर्द उड़े या कहीं ग़ुबार दिखे

गुलज़ार

हाथ छूटें भी तो रिश्ते नहीं छोड़ा करते

गुलज़ार

ये तिलिस्म-ए-मौसम-ए-गुल नहीं कि ये मोजज़ा है बहार का

गुलनार आफ़रीन

शजर-ए-उम्मीद भी जल गया वो वफ़ा की शाख़ भी जल गई

गुलनार आफ़रीन

हर शजर के तईं होता है समर से पैवंद

ग़ुलाम यहया हुज़ूर अज़ीमाबादी

मैं इक मुसाफ़ि-ए-तन्हा मिरा सफ़र तन्हा

गुहर खैराबादी

क्यूँकर न ख़ुश हो सर मिरा लटक्का के दार में

गोया फ़क़ीर मोहम्मद

तोड़ सको तुम शाख़ से मुझ को ऐसी तो मैं कली नहीं हूँ

गिरिजा व्यास

क़दमों से मेरे गर्द-ए-सफ़र कौन ले गया

ग़ुलाम मुर्तज़ा राही

वो बे-दिली में कभी हाथ छोड़ देते हैं

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

फिर वो दरिया है किनारों से छलकने वाला

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

बन से फ़सील-ए-शहर तक कोई सवार भी नहीं

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

न पहुँचे हाथ जिस का ज़ोफ़ से ता-ज़ीस्त दामन तक

ग़ुलाम मौला क़लक़

ख़ुद देख ख़ुदी को ओ ख़ुद-आरा

ग़ुलाम मौला क़लक़

मसाफ़त-ए-उम्र में ज़ियाँ का हिसाब होता है जुस्तुजू से

ग़ुलाम हुसैन साजिद

मैं अपने सूरज के साथ ज़िंदा रहूँगा तो ये ख़बर मिलेगी

ग़ुलाम हुसैन साजिद

आइना-आसा ये ख़्वाब-ए-नीलमीं रक्खूँगा मैं

ग़ुलाम हुसैन साजिद

जज़ीरे हों कि वो सहरा हों ख़्वाब होना है

ग़यास मतीन

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