शाखा Poetry (page 15)

इक हवा आई है दीवार में दर करने को

फ़रहत एहसास

जल्वा है वो कि ताब-ए-नज़र तक नहीं रही

फ़रहत अब्बास

तेरा निगाह-ए-शौक़ कोई राज़-दाँ न था

फ़ानी बदायुनी

जब दिल में तिरे ग़म ने हसरत की बना डाली

फ़ानी बदायुनी

बे-अजल काम न अपना किसी उनवाँ निकला

फ़ानी बदायुनी

कोई समझेगा क्या राज़-ए-गुलशन

फ़ना निज़ामी कानपुरी

ग़म हर इक आँख को छलकाए ज़रूरी तो नहीं

फ़ना निज़ामी कानपुरी

टूटी जहाँ जहाँ पे कमंद

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

तीन आवाज़ें

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

सोचने दो

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

मुलाक़ात

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

मिरे हमदम मिरे दोस्त!

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

ऐ हबीब-ए-अम्बर-दस्त!

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

जमेगी कैसे बिसात-ए-याराँ कि शीशा ओ जाम बुझ गए हैं

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

''आप की याद आती रही रात भर''

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

सरहद-ए-जल्वा से जो आगे निकल जाएगी

एज़ाज़ अफ़ज़ल

निगाह-ए-बाग़बाँ कुछ मेहरबाँ मा'लूम होती है

एज़ाज़ अफ़ज़ल

किसी के शिकवा-हा-ए-जौर से वाक़िफ़ ज़बाँ क्यूँ हो

एजाज़ वारसी

हुआ के खेल में शिरकत के वास्ते मुझ को

एजाज़ गुल

कभी क़तार से बाहर कभी क़तार के बीच

एजाज़ गुल

तकमील

एजाज़ फ़ारूक़ी

हर शख़्स में कुछ लोग कमी ढूँड रहे हैं

डॉक्टर आज़म

ऐन-फ़ितरत है कि जिस शाख़ पे फल आएँगे

दिवाकर राही

लग गए हैं फ़ोन लगने में जो पच्चीस साल

दिलावर फ़िगार

ज़मीन अपने ही मेहवर से हट रही होगी

दिलावर अली आज़र

ये मो'जिज़ा भी दिखाती है सब्ज़ आग मुझे

दानियाल तरीर

न वो ताएरों का जमघट न वो शाख़-ए-आशियाना

दानिश फ़राही

ये बात बात में क्या नाज़ुकी निकलती है

दाग़ देहलवी

कौन सा ताइर-ए-गुम-गश्ता उसे याद आया

दाग़ देहलवी

दुनिया में दिल लगा के बहुत सोचते रहे

डी. राज कँवल

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