शाखा Poetry (page 11)

छुपी है तुझ में कोई शय उसे न ग़ारत कर

राजेन्द्र मनचंदा बानी

कहीं से मौत को लाओ कि ग़म की रात कटे

राजेन्द्र कृष्ण

फ़स्ल-ए-गुल में जो कोई शाख़-ए-सनोबर तोड़े

रजब अली बेग सुरूर

ख़ुश्बू का ज़वाल

राज नारायण राज़

टूटी हुई दीवार की तक़दीर बना हूँ

राज नारायण राज़

क्या बात है कि बात ही दिल की अदा न हो

राज नारायण राज़

फिर उन की निगाहों के पयाम आए हुए हैं

राज कुमार सूरी नदीम

हिसार-ए-ज़ात से निकलूँ तो तुझ से बात करूँ

राज कुमार क़ैस

ज़मीं पर रौशनी ही रौशनी है

रईस अमरोहवी

ये कर्बला है नज़्र-ए-बला हम हुए कि तुम

रईस अमरोहवी

गर्द में अट रहे हैं एहसासात

रईस अमरोहवी

हर एक शाख़ थी लर्ज़ां फ़ज़ा में चीख़-ओ-पुकार

राही फ़िदाई

कहाँ ताक़त ये रूसी को कहाँ हिम्मत ये जर्मन को

इक़बाल सुहैल

उस आइने में देखना हैरत भी आएगी

इक़बाल साजिद

जब शाख़-ए-तमन्ना पे कोई फूल खिला है

इक़बाल मिनहास

मिरी नज़र से जो नज़रें बचाए बैठे हैं

इक़बाल हुसैन रिज़वी इक़बाल

बुझ गई दिल की किरन आईना-ए-जाँ टूटा

इक़बाल हैदर

ख़िज़ाँ का क़र्ज़ तो इक इक दरख़्त पर है यहाँ

इक़बाल अशहर कुरेशी

ये किस से चाँदनी में हम ब-ज़ेर-ए-आसमाँ लिपटे

इंशा अल्लाह ख़ान

तू ने लगाई अब की ये क्या आग ऐ बसंत

इंशा अल्लाह ख़ान

सद-बर्ग गह दिखाई है गह अर्ग़वाँ बसंत

इंशा अल्लाह ख़ान

फ़ज़ा में रंग से बिखरे हैं चाँदनी हुई है

इंजील सहीफ़ा

शाख़-दर-शाख़ होती है ज़ख़्मी

इन्दिरा वर्मा

दोस्त जब ज़ी-वक़ार होता है

इन्दिरा वर्मा

उखड़ी न एक शाख़ भी नख़्ल-ए-जदीद की

इनाम दुर्रानी

क्या जाने शाख़-ए-वक़्त से किस वक़्त गिर पड़ूँ

इमरान-उल-हक़ चौहान

उस का बदन भी चाहिए और दिल भी चाहिए

इमरान-उल-हक़ चौहान

अपने लहू में ज़हर भी ख़ुद घोलता हूँ मैं

इमरान-उल-हक़ चौहान

मैं शजर हूँ और इक पत्ता है तू

इमरान हुसैन आज़ाद

महबूब-ए-ख़ुदा ने तुझे नायाब बनाया

इमदाद अली बहर

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