शाखा Poetry (page 9)

मगर ज़ुल्म के ख़िलाफ़

साहिर लुधियानवी

न तो ज़मीं के लिए है न आसमाँ के लिए

साहिर लुधियानवी

हर एक फूल के दामन में ख़ार कैसा है

साहिर होशियारपुरी

हवा ने सीने में ख़ंजर छुपा के रक्खा है

साहिबा शहरयार

सदा अपनी रविश अहल-ए-ज़माना याद रखते हैं

सहर अंसारी

हर अंजुमन में दावा-ए-वहशत किया करो

सग़ीर अहमद सूफ़ी

तारों से मेरा जाम भरो मैं नशे में हूँ

साग़र सिद्दीक़ी

पूछा किसी ने हाल किसी का तो रो दिए

साग़र सिद्दीक़ी

बैठे थे जब तो सारे परिंदे थे साथ साथ

साग़र आज़मी

गुलशन को बहारों ने इस तरह नवाज़ा है

साग़र आज़मी

ऐसी नहीं है बात कि क़द अपने घट गए

साग़र आज़मी

आदमी का नशा

सईदुद्दीन

ख़ुश्क होंटों की अना माइल-ए-साग़र क्यूँ है

सईद आरिफ़ी

मआनी की तलाश में मरते लफ़्ज़

सईद अहमद

नज़र नज़र से वो कलियाँ खिला खिला भी गया

सादिक़ नसीम

ज़िंदगी ग़म के अंधेरों में सँवरने से रही

सादिक़ इंदौरी

पड़ा न फ़र्क़ कोई पैरहन बदल के भी

साबिर ज़फ़र

वो धूप वो गलियाँ वही उलझन नज़र आए

साबिर वसीम

क़लम से राब्ता-ए-रंग-ओ-आब टूट गया

सबा नक़वी

हम ने ख़ाक-ए-दर-ए-महबूब जो चेहरे पे मली

सबा जायसी

ज़िंदगानी हँस के तय अपना सफ़र कर जाएगी

सबा इकराम

आवाज़ के पत्थर जो कभी घर में गिरे हैं

सबा इकराम

तुम ने रस्म-ए-जफ़ा उठा दी है

सबा अकबराबादी

पूछें तिरे ज़ुल्म का सबब हम

सबा अकबराबादी

जुनूँ में गुम हुए होश्यार हो कर

सबा अकबराबादी

जो हमारे सफ़र का क़िस्सा है

सबा अकबराबादी

हक़-ओ-नाहक़ जलाना हो किसी को तो जला देना

साइल देहलवी

हम को ख़ुश आया तिरा हम से ख़फ़ा हो जाना

सादुल्लाह शाह

इस शोला-ख़ू की तरह बिगड़ता नहीं कोई

रूही कंजाही

हिसार के सभी निज़ाम गर्द गर्द हो गए

रियाज़ लतीफ़

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