न तो ज़मीं के लिए है न आसमाँ के लिए
तिरा वजूद है अब सिर्फ़ दास्ताँ के लिए
पलट के सू-ए-चमन देखने से क्या होगा
वो शाख़ ही न रही जो थी आशियाँ के लिए
ग़रज़-परस्त जहाँ में वफ़ा तलाश न कर
ये शय बनी थी किसी दूसरे जहाँ के लिए
Jaun Eliya
Ahmad Faraz
Habib Jalib
Allama Iqbal
Gulzar
Parveen Shakir
Wasi Shah
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Javed Akhtar
Mohsin Naqvi
Faiz Ahmad Faiz
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इस तरह ज़िंदगी ने दिया है हमारा साथ
जज़्बात भी हिन्दू होते हैं चाहत भी मुसलमाँ होती है
देखा है ज़िंदगी को कुछ इतने क़रीब से
लश्कर-कुशी
मैं जागूँ सारी रैन सजन तुम सो जाओ
हम-अस्र
तोड़ लेंगे हर इक शय से रिश्ता तोड़ देने की नौबत तो आए
नफ़स के लोच में रम ही नहीं कुछ और भी है
उन का ग़म उन का तसव्वुर उन के शिकवे अब कहाँ
जो बात तुझ में है तिरी तस्वीर में नहीं
भूले से मोहब्बत कर बैठा, नादाँ था बेचारा, दिल ही तो है
जश्न-ए-ग़ालिब