शोर Poetry (page 5)

सावन-रुत और उड़ती पुर्वा तेरे नाम

ताजदार आदिल

यूँ नक़ाब-ए-रुख़ मुक़ाबिल से उठी

ताबिश देहलवी

ज़वाल की आख़िरी हिचकियाँ

तबस्सुम काश्मीरी

खोता ही नहीं है हवस-ए-मतअम-ओ-मलबस

ताबाँ अब्दुल हई

अपनी फ़रहत के दिन ऐ यार चले आते हैं

तअशशुक़ लखनवी

औरतों की असेंबली

सय्यद ज़मीर जाफ़री

मोहताज नहीं क़ाफ़िला आवाज़-ए-दरा का

सय्यद यूसुफ़ अली खाँ नाज़िम

नज़र पे बैठ गया जो ग़ुबार किस का था

सय्यद मुनीर

मिज़ाज-ए-हुस्न में यारब तू प्यार पैदा कर

सय्यद मोहम्मद ज़फ़र अशक संभली

कसरत-ए-औलाद

सय्यद मोहम्मद जाफ़री

इजतिमाई मुबाशरत

सय्यद काशिफ़ रज़ा

मुनव्वर और मुबहम इस्तिआरे देख लेता हूँ

सय्यद अमीन अशरफ़

उठो यहाँ से कहीं और जा के सो जाओ

सुरेन्द्र पंडित सोज़

तिलिस्म-ख़ाना-ए-दिल में है चार-सू रौशन

सुल्तान अख़्तर

कचोके दिल को लगाता हुआ सा कुछ तो है

सुलेमान ख़ुमार

कि ख़ुद-नुमाई न तश्हीर चाहते हैं हम

सुहैल अख़्तर

हमारे जैसे ही लोगों से शहर भर गए हैं

सुहैल अख़्तर

मैं खो गया तो शहर-ए-फ़न में दस्तियाब हो गया

सुहैल अहमद ज़ैदी

कुछ दफ़्न है और साँस लिए जाता है

सुहैल अहमद ज़ैदी

कुछ दफ़्न है और साँस लिए जाता है

सुहैल अहमद ज़ैदी

ज़ब्त की क़ैद-ए-सख़्त ने हम को रिहा नहीं किया

सूफ़िया अनजुम ताज

तेरा ही ज़िक्र हरसू तिरा ही बयाँ मिले

सिया सचदेव

दिल से अब तो नक़्श-ए-याद-ए-रफ़्तगाँ भी मिट गया

सिराज मुनीर

ये वो आज़माइश-ए-सख़्त है कि बड़े बड़े भी निकल गए

सिराज लखनवी

बे-समझे-बूझे मोहब्बत की इक काफ़िर ने ईमान लिया

सिराज लखनवी

सुना है जब सीं तेरे हुस्न का शोर

सिराज औरंगाबादी

कहाँ है गुल-बदन मोहन पियारा

सिराज औरंगाबादी

हुआ हूँ इन दिनों माइल किसी का

सिराज औरंगाबादी

हमारे पास जानाँ आन पहुँचा

सिराज औरंगाबादी

है जुम्बिश-ए-मिज़्गाँ में तिरी तीर की आवाज़

सिराज औरंगाबादी

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