सुबह की सुबह Poetry (page 5)

तुझ से बोसा मैं न माँगा कभू डरते डरते

वली उज़लत

तीरा-बख़्तों को करे है नाला-ए-ग़मगीं ख़राब

वली उज़लत

तीरा-बख़्तों को करे है नाला-ए-ग़मगीं ख़राब

वली उज़लत

मिरे नज़'अ को मत उस से कहो हुआ सो हुआ

वली उज़लत

मग़्ज़-ए-बहार इस बरस उस बिन बचा न था

वली उज़लत

कर रहे हैं मुझ से तुझ-बिन दीदा-ए-नमनाक जंग

वली उज़लत

हँसूँ जूँ गुल तिरे ज़ख़्मों से उल्फ़त इस को कहते हैं

वली उज़लत

है उस की ज़ुल्फ़ से नित पंजा-ए-अदू गुस्ताख़

वली उज़लत

गुल रहे नहिं नाम को सरकश हैं ख़ाराँ अल-अयाज़

वली उज़लत

ग़ुंचा-ए-दिल मिरा खा कर गुल-ए-ख़ंदाँ मेरा

वली उज़लत

दिलों में रहिए जहाँ के वले ख़ुदा के ढब

वली उज़लत

दर्द जूँ शम्अ' मिले है शब-ए-हिज्राँ मुझ को

वली उज़लत

अगर मैं मोजज़े को ख़ाकसारी के अयाँ करता

वली उज़लत

देखना हर सुब्ह तुझ रुख़्सार का

वली मोहम्मद वली

देखना हर सुब्ह तुझ रुख़्सार का

वली मोहम्मद वली

सुनो ये ग़म की सियह रात जाने वाली है

वाली आसी

लगाएँ आग ही दिल में कि कुछ उजाला हो

वजद चुगताई

कौन ये रौशनी को समझाए

वजद चुगताई

आप ही अपना मैं दुश्मन हो गया

वजद चुगताई

शौक़ देता है मुझे पैग़ाम-ए-इश्क़

वहशत रज़ा अली कलकत्वी

हुस्न की ज़बान से

वहीदुद्दीन सलीम

गरेबाँ से तिरे किस ने निकाला सुब्ह-ए-ख़ंदाँ को

वहीदुद्दीन सलीम

गरेबाँ से तिरे किस ने निकाला सुब्ह-ए-ख़ंदाँ को

वहीदुद्दीन सलीम

है शाम-ए-अवध गेसू-ए-दिलदार का परतव

वाहिद प्रेमी

ज़माने फिर नए साँचे में ढलने वाला है

वहीद क़ुरैशी

कोई न चाहने वाला था हुस्न-ए-रुस्वा का

वहीद क़ुरैशी

इलाज बिल-मिस्ल

वहीद अहमद

मोहब्बत

उरूज जाफ़री

फिर क्या जो फूट फूट के ख़ल्वत में रोइए

उर्फ़ी आफ़ाक़ी

इश्क़ में हर तमन्ना-ए-क़ल्ब-ए-हज़ीं सुर्ख़ आँसू बहाए तो मैं क्या करूँ

तुर्फ़ा क़ुरैशी

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