सुबह की सुबह Poetry (page 7)

हर सितम लुत्फ़ है दिल ख़ूगर-ए-आज़ार कहाँ

ग़ुलाम रब्बानी ताबाँ

जिस का गोरा रंग हो वो रात को खिलता है ख़ूब

ताबाँ अब्दुल हई

ग़म में रोता हूँ तिरे सुब्ह कहीं शाम कहीं

ताबाँ अब्दुल हई

देख उस को ख़्वाब में जब आँख खुल जाती है सुब्ह

ताबाँ अब्दुल हई

फिर उम्र-भर की नाला-सराई का वक़्त है

सय्यद तम्जीद हैदर तम्जीद

रिवाज-ओ-रस्म का उस को हुनर भी आता है

सय्यद मुनीर

मुशाएरा

सय्यद मोहम्मद जाफ़री

जब मैं रोया हूँ वो रोए हैं ये उल्फ़त मेरे साथ

सय्यद काज़िम अली शौकत बिलगिरामी

हर एक चीज़ मयस्सर सिवाए बोसा है

सय्यद काशिफ़ रज़ा

रऊनतों में न इतनी भी इंतिहा हो जाए

सय्यद अारिफ़

इस तरह चश्म-ए-नीम-वा ग़ाफ़िल भी थी बेदार भी

सय्यद अमीन अशरफ़

किसी ख़याल की रौ में था मुस्कुराते हुए

सय्यद अमीन अशरफ़

कट गई रात सुब्ह होती है

सय्यद अाग़ा अली महर

यही था वक़्फ़ तिरी महफ़िल-ए-तरब के लिए

सय्यद आबिद अली आबिद

मय हो साग़र में कि ख़ूँ रात गुज़र जाएगी

सय्यद आबिद अली आबिद

गुलों की ख़ूँ-शुदगी को शगुफ़्तगी न समझ

सय्यद आबिद अली आबिद

ये धूप गिरी है जो मिरे लॉन में आ कर

स्वप्निल तिवारी

सूने सूने से फ़लक पर इक घटा बनती हुई

स्वप्निल तिवारी

मुँह अँधेरे तेरी यादों से निकलना है मुझे

स्वप्निल तिवारी

ख़्वाब देखता हूँ

सुरूर बाराबंकवी

सुनहरी धूप खिली है कई दिनों के ब'अद

सुनील आफ़ताब

अपने ही टूटे हुए ख़्वाबों को दिल चुनता भी है

सुल्तान सब्र वानी

जो नज़र आता नहीं दीवार में दर और है

सुलतान रशक

धूप की शिद्दत में नंगे पाँव नंगे सर निकल

सुलतान रशक

काम आती नहीं अब कोई तदबीर हमारी

सुल्तान अख़्तर

झूट रौशन है कि सच्चाई नहीं जानते हैं

सुल्तान अख़्तर

कल रात मेरे साथ अजब हादिसा हुआ

सुलेमान ख़ुमार

ये भी शायद तिरा अंदाज़-ए-दिल-आराई है

सुलैमान अरीब

हिसाब-ए-उम्र करो या हिसाब-ए-जाम करो

सुलैमान अरीब

हर सुब्ह अपने घर में उसी वक़्त जागना

सुहैल अहमद ज़ैदी

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