केक Poetry (page 12)

रक्खे हर इक क़दम पे जो मुश्किल की आगही

सबीला इनाम सिद्दीक़ी

नया शगूफ़ा इशारा-ए-यार पर खिला है

सबा नक़वी

सोना था जितना अहद-ए-जवानी में सो लिए

सबा अकबराबादी

बसा-औक़ात आ जाते हैं दामन से गरेबाँ में

साइल देहलवी

इसी लिबास इसी पैरहन में रहना है

रिज़वानूरर्ज़ा रिज़वान

मुझ को न दिल पसंद न दिल की ये ख़ू पसंद

रियाज़ ख़ैराबादी

मेरे पहलू में हमेशा रही सूरत अच्छी

रियाज़ ख़ैराबादी

मय रहे मीना रहे गर्दिश में पैमाना रहे

रियाज़ ख़ैराबादी

गुलों के पर्दे में शक्लें हैं मह-जबीनों की

रियाज़ ख़ैराबादी

गुल मुरक़्क़ा' हैं तिरे चाक गरेबानों के

रियाज़ ख़ैराबादी

ये आलम-ए-वहशत है कि दहशत का असर है

रियासत अली ताज

ज़माने में वो मह-लक़ा एक है

रिन्द लखनवी

साइलाना उन के दर पर जब मिरा जाना हुआ

रिन्द लखनवी

अल्लाह के भी घर से है कू-ए-बुताँ अज़ीज़

रिन्द लखनवी

बहारों को चमन याद आ गया है

रिफ़अत सुलतान

नक़ाब-ए-रुख़ उठा कर हुस्न जब जल्वा-फ़िगन होगा

रिफ़अत सेठी

फिर फ़िक्र-ए-सुख़न मैं कर रहा हूँ

रिफ़अत सरोश

जब याद आया तेरा महकता बदन मुझे

रिफ़अत अल हुसैनी

रात आ बैठी है पहलू में सितारो तख़लिया

रहमान फ़ारिस

तख़्लीक़ किसे कहते हैं है अज़्मत-ए-फ़न क्या

रहबर जौनपूरी

मसरूफ़ियत उसी की है फ़ुर्सत उसी की है

रेहाना रूही

वो तमाम रंग अना के थे वो उमंग सारी लहू से थी

राज़ी अख्तर शौक़

शम्अ' की आग़ोश ख़ाली कर के परवाना चला

रज़ा जौनपुरी

मेरे नाले पर नहीं तुझ को तग़ाफ़ुल के सिवा

रज़ा अज़ीमाबादी

इस तरह बज़्म में वस्फ़-ए-रुख़-ए-जानाना करूँ

रज़ा अज़ीमाबादी

कौन कहता मुझे शाइस्ता-ए-तहज़ीब-ए-जुनूँ

रविश सिद्दीक़ी

हुस्न-ए-असनाम ब-हर-लम्हा फ़ुज़ूँ है कि नहीं

रविश सिद्दीक़ी

बुत-गर है न कोई बुत-शिकन है

रविश सिद्दीक़ी

वो ख़ुश-सुख़न तो किसी पैरवी से ख़ुश न हुआ

रऊफ़ ख़ैर

कोई भी ज़ोर ख़रीदार पर नहीं चलता

रऊफ़ ख़ैर

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