केक Poetry (page 14)

जू-ए-ताज़ा किसी कोहसार-कुहन से आए

रईस फ़रोग़

देर तक मैं तुझे देखता भी रहा

रईस फ़रोग़

कुछ इस तरह से गुज़ारी है ज़िंदगी मैं ने

रहमत इलाही बर्क़ आज़मी

कहाँ न-जाने चला गया इंतिज़ार कर के

इरफ़ान सत्तार

कभी किसी से न हम ने कोई गिला रक्खा

इरफ़ान सत्तार

एक तारीक ख़ला उस में चमकता हवा मैं

इरफ़ान सत्तार

चुप है आग़ाज़ में, फिर शोर-ए-अजल पड़ता है

इरफ़ान सत्तार

अब तिरे लम्स को याद करने का इक सिलसिला और दीवाना-पन रह गया

इरफ़ान सत्तार

अब आ भी जाओ, बहुत दिन हुए मिले हुए भी

इरफ़ान सत्तार

उफ़ क्या मज़ा मिला सितम-ए-रोज़गार में

इक़बाल सुहैल

फ़िक्र-ए-मेआर-ए-सुख़न बाइस-ए-आज़ार हुई

इक़बाल साजिद

सरसब्ज़ दिल की कोई भी ख़्वाहिश नहीं हुई

इक़बाल साजिद

ख़ौफ़ दिल में न तिरे दर के गदा ने रक्खा

इक़बाल साजिद

हस्ब-ए-मामूल आए हैं शाख़ों में फूल अब के बरस

इक़बाल माहिर

चश्म-ए-ख़ाना मक़ाम-ए-दर्द का है

इक़बाल ख़ुसरो क़ादरी

वो आ रहे हैं वो जा रहे हैं मिरे तसव्वुर पे छा रहे हैं

इक़बाल हुसैन रिज़वी इक़बाल

ज़ब्त भी चाहिए ज़र्फ़ भी चाहिए और मोहतात पास-ए-वफ़ा चाहिए

इक़बाल अज़ीम

ज़वाल-ए-फ़िक्र-ओ-फ़न था और मैं था

इक़बाल अासिफ़

मेरी फ़रियाद पे रोया है चमन मेरे बा'द

इक़बाल आबिदी

शब ख़्वाब में देखा था मजनूँ को कहीं अपने

इंशा अल्लाह ख़ान

जब तक कि ख़ूब वाक़िफ़-ए-राज़-ए-निहाँ न हूँ

इंशा अल्लाह ख़ान

वो अजीब शख़्स था भीड़ में जो नज़र में ऐसे उतर गया

इन्दिरा वर्मा

होते होंगे इस दुनिया में अर्श के दा'वेदार बुलंद

इनाम हनफ़ी

मौसम-ए-गुल है तिरे सुर्ख़ दहन की हद तक

इमरान-उल-हक़ चौहान

इस दश्त से आगे भी कोई दश्त-ए-गुमाँ है

इमरान आमी

रोते हैं सुन के कहानी मेरी

इम्दाद इमाम असर

कब ग़ैर हुआ महव तिरी जल्वागरी का

इम्दाद इमाम असर

अपने दर से जो उठाते हैं हमें

इम्दाद इमाम असर

मैं उस बुत का वस्ल ऐ ख़ुदा चाहता हूँ

इमदाद अली बहर

जड़ाव चूड़ियों के हाथों में फबन क्या ख़ूब

इमदाद अली बहर

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