मांग Poetry (page 4)

ऐ हम-नफ़स उस ज़ुल्फ़ के अफ़्साने को मत छेड़

वलीउल्लाह मुहिब

दिल तलबगार-ए-नाज़-ए-मह-वश है

वली मोहम्मद वली

फूल से मासूम बच्चों की ज़बाँ हो जाएँगे

वाली आसी

मेहनत हो मुसीबत हो सितम हो तो मज़ा है

वहशत रज़ा अली कलकत्वी

तल्ख़ी-कश-ए-नौमीदी-ए-दीदार बहुत हैं

वहशत रज़ा अली कलकत्वी

किसी तरह दिन तो कट रहे हैं फ़रेब-ए-उम्मीद खा रहा हूँ

वहशत रज़ा अली कलकत्वी

किस नाम-ए-मुबारक ने मज़ा मुँह को दिया है

वहशत रज़ा अली कलकत्वी

आप अपना रू-ए-ज़ेबा देखिए

वहशत रज़ा अली कलकत्वी

राह-ए-तलब की लाख मसाफ़त गिराँ सही

वाहिद प्रेमी

इक दश्त-ए-बे-अमाँ का सफ़र है चले-चलो

वहीद अख़्तर

थकावटों से बैठ के सफ़र उतारिए कहीं

वहाब दानिश

जमाल-ए-नस्तरनी रंग-ओ-बू-ए-यासमनी

वारिस किरमानी

बहुत दिनों में हम उन से जो हम-कलाम हुए

वारिस किरमानी

ज़मीं से आसमाँ तक आसमाँ से ला-मकाँ तक है

वहशी कानपुरी

किसे बताऊँ कि ग़म क्या है सरख़ुशी क्या है

उरूज ज़ैदी बदायूनी

वो ध्यान की राहों में जहाँ हम को मिलेगा

उर्फ़ी आफ़ाक़ी

जाने किस मोड़ पे ले आई हमें तेरी तलब

उम्मीद फ़ाज़ली

ज़ेहन-ओ-दिल में कुछ न कुछ रिश्ता भी था

उम्मीद फ़ाज़ली

जाने ये कैसा ज़हर दिलों में उतर गया

उम्मीद फ़ाज़ली

हाए इक शख़्स जिसे हम ने भुलाया भी नहीं

उम्मीद फ़ाज़ली

कभी ज़माना था उस की तलब में रहते थे

तुफ़ैल चतुर्वेदी

एक साए की तलब में ज़िंदगी पहुँची यहाँ

तुफ़ैल चतुर्वेदी

मैं तिरे जिस्म के जब पार निकल जाऊँगा

त्रिपुरारि

वो रंग-रूप मसाफ़त की धूल चाट गई

तौक़ीर रज़ा

एक सन्नाटा सा तक़रीर में रक्खा गया था

तसनीम आबिदी

बे-तलब कर के ज़रूरत भी चली जाए अगर

तसनीम आबिदी

मिल जाए अमाँ दुनिया में पल भर नहीं लगता

तस्लीम अहमद तसव्वुर

जौन-एलिया से आख़री मुलाक़ात

तारिक़ क़मर

कौन सा मैं जवाज़ दूँ सूरत-ए-हाल के लिए

तारिक़ क़मर

डूबा हूँ तो किस शख़्स का चेहरा नहीं उतरा

तारिक़ जामी

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