तलवार Poetry (page 4)

करने दो अगर क़त्ताल-ए-जहाँ तलवार की बातें करते हैं

शकील बदायुनी

बदले बदले मिरे ग़म-ख़्वार नज़र आते हैं

शकील बदायुनी

वक़्त की डोर ख़ुदा जाने कहाँ से टूटे

शकेब जलाली

साहिल तमाम अश्क-ए-नदामत से अट गया

शकेब जलाली

बस इक शुआ-ए-नूर से साया सिमट गया

शकेब जलाली

आ के पत्थर तो मिरे सहन में दो चार गिरे

शकेब जलाली

यादों की ज़ंजीरें

शहज़ाद अहमद

सोता जागता साया

शहज़ाद अहमद

कोशिश है शर्त यूँही न हथियार फेंक दे

शहज़ाद अहमद

ये इक शजर कि जिस पे न काँटा न फूल है

शहरयार

मक़्तल में चमकती हुई तलवार थे हम लोग

शाहिद कमाल

कूचा-ए-संग-ए-मलामत के सब आसार के साथ

शाहिद कमाल

हमें ख़बर भी नहीं यार खींचता है कोई

शाहिद कमाल

ब-हर्फ़-ए-सूरत इंकार तोड़ दी मैं ने

शाहिद कमाल

लगा जब अक्स-ए-अबरू देखने दिलदार पानी में

शाह नसीर

लगा जब अक्स-ए-अबरू देखने दिलदार पानी में

शाह नसीर

ख़ाल-ए-मश्शाता बना काजल का चश्म-ए-यार पर

शाह नसीर

गो सियह-बख़्त हूँ पर यार लुभा लेता है

शाह नसीर

तुम्हारी याद तो लिपटी है पूरे घर के मंज़र से

सगुफ़ता यासमीन

जान या दिल नज़्र करना चाहिए

शाद लखनवी

लम्हों का पथराव है मुझ पर सदियों की यलग़ार

शबनम रूमानी

पी रहा है ज़िंदगी की धूप कितने प्यार से

शबनम नक़वी

ख़त्त-ए-पेशानी में सफ़्फ़ाक अज़ल के दिन से

शबाब

देख क्या तेरी जुदाई में है हालत मेरी

शबाब

सहरा की बे-आब ज़मीं पर एक चमन तय्यार किया

शायर लखनवी

जेहल को इल्म का मेआ'र समझ लेते हैं

शायर लखनवी

जब चली अपनों की गर्दन पर चली

शाद आरफ़ी

या रब कहीं से गर्मी-ए-बाज़ार भेज दे

मोहम्मद रफ़ी सौदा

जब यार ने उठा कर ज़ुल्फ़ों के बाल बाँधे

मोहम्मद रफ़ी सौदा

''एक नज़्म कहीं से भी शुरूअ हो सकती है''

सरवत हुसैन

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